अधुर हसरतें
अधुरी हसरतें
हसरतें तमाम दिल की खत्म हुई
जीवन को सुकून आधा ही मिला है।
हम औरों से क्या शिकवा करें
हमें अपने सितारों से गिला है।
मेहनत तो लाख की जिंदगी में
मगर मेहनताना अधूरा ही मिला है।
दिल क्या बयां करें हसरतें अपनी
यह होंठ मजबूरी के धागों से सिला है।
यह आंखें अश्क बहा के बता देती
पर हमें दुपट्टे के कोनों से गिला है।
मकान हौसलों का जो खड़ा किया वो
लफ्जे अपनों के धमाकों से हिला है।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश