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29 Dec 2017 · 15 min read

अधुरी कहानी (रांग नंबर)

अधुरी कहानी (रांग नंबर)
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ट्रीन..ट्रीन… ट्रीन संजू ने फोन की बजती हुई घंटी को सुन फोन उठाया
हेलो..कौन
उधर से एक मीठी अत्यंत सुरीली सुमधुर स्वर उभरी ……हेलो $$$$…अमित भैया हैं?
उस नारी स्वर ने प्रश्न के बदले प्रश्न हीं पूछा….
संजू उस मंत्रमुग्ध कर देने वाली कर्णप्रिय ध्वनि से इतना प्रभावित हुआ कि बीना देर किये झूठ बोल गया ……..!
देखिये अमित भैया तो अभी हैं नहीं , हां आप अपना फोन नंबर दे दीजिए , भैया जैसे आयेंगे मैं बात करा दूंगा।
उधर से प्रतिउत्तर में… भैया के पास हमारा नंबर है …….!
संजू बीना समय गवाये….. देखिए अगर आपने अपना नंबर नहीं दिया तो मैं उनको क्या बताऊंगा.. आपने तो अपना नाम भी नहीं बताया…
उधर से फिर आवाज आई…. वैसे तो ……मैं आकांक्षा बोल रही हूँ… आप बता देना आकांक्षा का फोन आया था।
जबतक दूसरी तरफ से बात समाप्त की जाय बीच में हीं संजू बोल पड़ा..
मैडम जी …..आपने भले हीं नाम बता दिया है लेकिन अगर कहीं संयोगवश भैया के पास आपका नंबर नही हुआ तो वे हमपे बहुत गुस्सा करेंगे..अतः कृपा कर अपना नंबर दे दीजिये।
नारी स्वर …अच्छा ठीक है
संजू ने फोन नंबर ले लिया …नंबर लेने के बाद
आकांक्षा जी सौरी….
आकांक्षा…. सौरी किस बात के लिए , आप ने नंबर अमित भैया को बताने के लिए ही तो लिया है
संजू….नहीं आकांक्षा जी दरअसल बात यह है कि यहाँ अमित नाम का कोई भी ब्यक्ति नहीं रहता है …वो तो आपका आवाज इतना प्यारा , कोयल के जैसे लगा की मैं खुद को आपका नंबर लेने से रोक न सका,
आपकी जानकारी के लिए बतादूं आपने रांग नंबर लगाया है इसी कारण मैंने आपको सौरी बोला।
इतना सुनते ही जैसे आकांक्षा के मनोमस्तिष्क में भूचाल आ गया हो…
अबे कमिने कमजर्फ आदमी यह पहले नहीं बता सकता था, तू तो आला दर्जे का घटिया आदमी है बहुत बड़ा वाला बद्तमीज है तूं…
जल्दी से फोन रख नहीं तो फोन में घूसकर मारूंगी तुझे….नामुराद नलायक…..।
और उधर से फोन डिस्कनेक्ट ह़ो गया।

इतनी गालियां सुनने के बाद भी जैसे संजू के सेहत पर इन भले – बुरे बातों का कोई असर ही न हुआ हो, वह तो जैसे हसीन सपनों के सागर में गोते लगाते हुए नजाने कैसे – कैसे ख्याति पुलाव पकाने लगा।
दुसरे दिन सुबह – सुबह ही संजू ने आकांक्षा को फोन मिला दिया।
कुछ देर घंटी होने के उपरांत आकांक्षा ने ही फोन उठाया ..हेलो कौन…?
संजू… मैं वहीं आपका कल वाला बद्तमीज
इतना सुनते ही आकांक्षा ने गुस्से से पूछा क्यों फोन किया..?
संजू….अजी आपको गाना सुनाने का मन किया तो कर दिया..
आकांक्षा ..अबे फोन रख गाना तूं अपनी माँ बहन को सुनाना। गुस्से से जैसे तपने सी लगी हो और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

उस दिन से यह शिलशिला अनवरत चलता रहा लगभग दो ढाई महीने तक दिन में दो – तीन बार संजू फोन करता …अगर जो फोन कोई और उठाता तो बीना कुछ बोले फोन रख देता, वहीं जब आकांक्षा फोन उठाती तो उसे परेशान करता, गाना सुनाने की ख्वाहिशात जाहिर करता।

धीरे- धीरे समय बीतता रहा और जैसे – जैसे समय बीत रहा था वैसे ही समय के साथ संजू द्वारा आकांक्षा को परेशान करने की प्रक्रिया अनवरत बीना किसी ब्रेकर के जैसे पूर्णिमा का चांद बढता है वैसे ही बढता चला जा रहा था।

यहाँ एक बात गौर करने योज्ञ है दो- तीन महीने से संजू अनवरत आकांक्षा को परेशान कर रहा था किन्तु आकांक्षा ने इस अनचाही परेशानी से निजात पाने का कोई भी समुचित प्रयास नहीं किया, यहा तक की इस अनचाही समस्या को अपने माँ, बाप या परिवार के किसी अन्य सदस्य के जेहन में भी नहीं आने दिया और इन्हीं बातों का फायदा उठाकर संजू उसे मांसिक यातनाएं देता रहा, जब वो खुद को असहज महसूस करती तो गालियां देती फिर फोन काट देती।

कभी – कभी हम न चाहते हुए भी अनजाने रूप से अनचाही समस्याओं को गले लगा बैठते है और इस विषय में अपने परिवार वालों को कुछ भी नहीं बताते जो आगे चलकर भविष्य में किसी अति भयावह समस्या का जन्मदात्री बन जाती है।…………
अतः समस्या बड़ी हो या छोटी उसे पालने से बेतर उस समस्या को परिवारजनों के संज्ञान में लाकर अतिशिघ्र उस समस्या का समाधान ढूंढ लेना चाहिए ताकि भविष्य सर्वदा सुरक्षित रहे।

खैर यह तो था अनचाहे अनजाने समस्याओं का हल किन्तु इस कथानक में ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई वह तो मैं प्रवाह में उन्मुक्त बहता चला गया।
संजू के फोन काल से आकांक्षा बहुत परेशान थी, अब इस फोन काल का सीधा असर उसके पठन – पाठन पर पड़ने लगा था, ये प्रतिदिन के फोन काल अब उसके सपनों में भी घंटी बजाने लगे थे। एक दिन सुबह- सुबह जैसे हीं वह सोकर उठी वैसे ही फोन की घंटी बज उठी कुछ देर तक तो वो वैसे मूर्तिवत खड़ी रही किन्तु जब अनवरत फोन की घंटी घनघनाती रही तो उसे हारकर काल रिसीव करना पड़ा किन्तु उस दिन आकांक्षा के स्वर बदले हुए थे।

उस दिन भी उसनें काल रिसीव करते ही पूछा… कौन
फिर वही चिरपरिचित आवाज …….आपका पुराना बद्तमीजी
लेकिन उस दिन आकांक्षा ने गालियों का कतई प्रयोग नहीं किया अपितु बड़े ही निरीह भाव से जैसे दया की भीख मांग रही हो बोली….
प्लीज आप जो कोई भी हो मुझ पर दया कर मेरे एक्जाम होने तक मुझे परेशान करना बंद कर दो , तुम्हारे प्रतिदिन के इस फोन से तंग आकर मैं अपने पढाई में कंन्सनट्रेट नहीं कर पा रही हूँ, प्लीज़… प्लीज…. प्लीज बक्स दो मुझे एकबार मेरी परीक्षाएं समाप्त हो जाय फिर जितना चाहे परेशान कर लेना।
संजू अबतक आकांक्षा द्वारा दी जाने वाली गालियों से कभी भी आहत नहीं हुआ था , आहत क्या गालियां सुनने के लिए ही तो वो फोन किया करता था शायद उन गालियों को सुन कर उसे असीमित आनंद की अनुभूति होने लगी थी किन्तु आज जब उसने आकांक्षा के मुख से ये कातर स्वर सुने तो शायद ये कातर, निस्पृह स्वर उसके अंतरमन को झिंझोड़ गये, वह पूछ बैठा…
आकांक्षा तुम किस क्लास में हो?
आकांक्षा….. आईएससी फाईनल ईयर
संजू….मैडम जी आज इस बद्तमीजी का आपसे वादा रहा परीक्षा ही नहीं रिजल्ट आने तक मैं किसी भी दिन आपको अब फोन नहीं करूंगा।
थोड़ी देर रूककर …मजाकिया लहजे में…. लेकिन मैडम जी……!
अभी वह कुछ बोलता बीच में ही आकांक्षा बोल पडी…..अब यह लेकिन किस लिए
संजू…रिजल्ट के बाद मैं आपको गाना सुनाकर ही रहूंगा
यह बात सुन आकांक्षा भी हसे बीना रह ना सकी
बोली…..ठीक है बद्तमीजी जी आप जैसा उचित समझें।
समय की अपनी गति है वह किसी के लिए रूकता नहीं तो किसी के लिए भागता भी नहीं इस बीच आकांक्षा का तो नहीं मालुम लेकिन संजू का एक – एक दिन एक – एक वर्ष जैसा बीतने लगा , उसे ये तीन चार महीने बीताने कई एक वर्ष बीताने जैसे प्रतीत होने लगे।
इंतजार की घड़ियां हमारे सोच से भी कही बहुत अधिक लम्बी होती है परन्तु बीतती जरुर हैं।
आज संजू के गांव से कोई बनारस आया था इलाज के लिए पूरे दिन वह उनके साथ ही रहा इलाज की सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रात्री एक बजे वह उन महानुभाव को छोडने वाराणसी जं. गया , जो ट्रेन रात्री दो बजे खुलने वाली थी किसी कारणवश आज चार चालीस में खुलने की सुचना जारी हुई थी ।
संजू अपने गवई मेहमान के साथ ट्रेन के प्लेटफार्म पे लगने व खुलने के इंतजार में बैठा था तभी पेपर वाला आवाज देता हुआ पेपर लेलो इन्टर का रिजल्ट आया पेपर लेलो उसके पास से गुजरा , एक पेपर दस रुपये का पेपर लेलो।

संजू ने तुरंत ही उसे रोका और एक पेपर लेलिया और उस गवई मेहमान से मुखातिब होकर बोला….अंकल जी इसी प्लेटफार्म पे आपकी गाड़ी लगेगी आप चले जाना मैं जा रहा हूँ वो महानुभाव संजू को रोकते रहे परन्तु संजू को तो जैसे पंख लग गये हों वह उनके बातों को अनसुना करता हुआ एस.टी.डी. बुथ की ओर दौड़ा लेकिन दुर्भाग्य से बुथ बंद मिला वह वहीं बूथ खुलने का इंतजार करने लगा।
जिस दिन अंतिम बार उसने आकांक्षा से बात किया था उस दिन से अबतक छः महीने बीत चुके है इन छः महीनों को बीताने में जीतनी परेशानी नहीं हुई उसे आज इस एस.टी.डी बूथ के खुलने तक के इंतजार में हो रही थी।
खैर अपने समयानुसार सुबह 5 बजे एस.टी.डी बूथ खुला, बूथ के खुलते हीं संजू लोकल फोन की ओर लपका तभी दुकानदार बोला…अरे भाई थोड़ा रूकजा थोड़ी साफ सफाई तो करने दे।
संजू पर तो जैसे कोई भूत सवार था उसने हर बात को अनसुना कर आकांक्षा का नंबर डायल करने लगा , जैसे ही फोन लगा घंटी का स्वर कानों में पड़ा ऐसा लगा जैसे आज उसके द्वारा किए जा रहे कईएक वर्षों की तपस्या का फल इस फोन के रिसीव होते ही मिल जाना है।
इंतजार की घड़ियां कितनी भी लम्बी क्यों न ह़ों लेकिन जब उनके द्वारा प्राप्त होने वाले फल की बारी आती है वह क्षण दुनिया के किसी भी खुशनुमा पल से कहीं ज्यादा खुशनुमा और अत्यधिक उत्साह भरने वाला होता है , एक और बात लम्बे से लम्बे इंतजार की घड़ियों को हम आसानी से काट लेते है किन्तु जब इसी इंतजार की घड़ी क्षणिक रह जाती है तब इंसान उद्विग्न हो उठता है वे कुछ पल असहनीय वेदनादायक होते हैं।

खैर दो बार पुरी – पुरी घंटी होने के बाद भी उधर से फोन किसी ने रिसीव नहीं किया शायद सब अभी सो रहे थे , इधर संजू के मन की दशा जल बीन तड़पती मछली जैसा होने लगा और उसने तीसरी बार रीडायल कीया तकरीबन एक या दो रींग हीं हुए होंगे फोन रिसीव हो गया कानों में मिश्री घोलती वहीं कर्णप्रिय बहुप्रतीक्षित स्वर सुनाई दिया जिसके श्रवण मात्र के लिए संजू के
हृदय की अभिलाषाओं का पारा खतरे के निसान को पार करने ही वाला था तुरंत ही खतरे के निसान से निचे आ गया।
हेलो कौन… आकांक्षा का चिरपरिचित स्वर नींद की आगोश में लिपटा हुआ सुनाई पड़ा।

बीना देर किये संजू बोल पड़ा , आज उसके स्वर भी उखड़े – उखड़े से थे जैसे कितना विह्वल हो बात करने के लिए , बोला…. जी मैं आपका वही छः माह पहले वाला बद्तमीज…।

इतना सुनना था आकांक्षा जैसे नींद से जागी और बीना कुछ सोचे , बीना यह पुछे की क्यों फोन किया
गालियों का अंबार लगा दी वो गालियां देती गई और संजू निःशब्द होकर सुनता गया
आकांक्षा बोल रही थी …तुम ठहरे आवारा , निकम्मे, गली के कुत्ते टाईप इंसान तुम भला कैसे अपने वादे पर कायम रह सकते हो ….आखिर थोड़े से समय के लिए दिखा दी न अपनी जात।

आज पहली बार आकांक्षा के इन भले बुरे बातों से संजू के मन को गहरा आघात लगा था फिर भी उसने अपने मन की वेदना को छुपाते हुए पूछा….
आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि मैने अपनी आवारागर्दी वाली जात दिखादी..?
उधर से आकांक्षा का घृणा मिश्रित स्वर उभरा ….तुमने तो कहा था कि जबतक रिजल्ट घोषित नहीं होता मैं फोन नहीं करूंगा, लेकिन तुम अपने वायदे पर कायम नहीं रह सके।

संजू आहत भाव से बोला….आकांक्षा जी रिजल्ट बेड पर नहीं आते वो न्यूज पेपर में प्रकाशित होते है और न्यूज पेपर मेरे हाथों में है , मैंने आज भी अपने वायदे के मुताबिक हीं आपको फोन किया ताकि आपको आपका रिजल्ट बता सकूँ , लेकिन आपने तो बीना जाने सुने सुबह – सुबह मेरे इज्ज़त की अर्थी ही उठा दी।

संजू की बाते सुन आकांक्षा किंकर्तव्यविमूढ़ जड़वत कुछ पल फोन लिए खड़ी रही , आज पहली बार उसे अपने ब्यवहार पर ग्लानि और संजू के प्रति प्रेम का बोध हो रहा था, उसने संजू से अपने आज के इस अति निन्दनीय व्यवहार के लिए क्षमा मांगा और संजू को होल्ड पर रख एडमिट कार्ड लाने गई ताकि रिजल्ट पता कर सके।

आकांक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुई थी , आज वह बहुत खुश थी जैसे हीं उसने अपना रिजल्ट सुना वह उछल ही तो पड़ी , शायद संजू उस वक्त उसके सामने होता तो वह उसे आलिंगनबद्ध कर चूम ही लेती , आकांक्षा अत्यंत प्रफुल्लित स्वर में बोली….. हेलो आपको पता नहीं आपने हमें कितनी बड़ी खुशी प्रदान की है अगर आप सामने होते त़ो आपको हमारी खुशी का एहसास होता , चलिए आज आप मुझे गाना सुना हीं दीजिए।

आज संजू आगे और कोई बात करने की स्थिति में खुद को नहीं पा रहा था, बोझिल स्वर में वह बोला…माफ कीजिएगा मैडम जी मै आज आपको कुछ भी नहीं सुना पाऊँगा , आज मैं खुद को कुछ भी सुना पाने की स्थिति में नहीं पा रहा हूँ और हां एक और बात ….अब आज से मैं आपको न कोई फोन करूंगा और नाहीं कभी परेशान करूंगा, अब तक हुई उन तमाम गुस्ताखियों के लिए आपसे क्षमा मांगता हूँ, हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा।
आज तक मैने जितनी भी गल्तियां की आपको मेन्टली हरासमेंट पहुचाया उन सभी गुस्ताखियों के लिए हृदय से क्षमा का भिख मांगता हूँ ।

आज से छः महीने पहले अगर संजू ने ये बातें की होती तो शायद आकांक्षा संकटमोचन मंदिर में घी के दीये जलाती , शुद्ध घी में बने मिष्ठानों का भोग चढाकर प्रसाद सब लोगों में बाटती परन्तु आज परिस्थिति एकदम उलट थी , आज संजू के मुख से प्रस्फूटित हुए इन तमाम बातों को सुन आकांक्षा किंकर्तव्यविमूढ़ चेतना शून्य सी हो गई इन अप्रत्याशित बातों ने जैसे उसके हृदय को छलनी कर असह्य पीड़ा से भर दिया था , कुछ पल तो जैसे उसके जुबान तालू से चीपक गये हों वह कुछ बोल ही न सकी..
कुछ पलों की चुप्पी के बाद….आकांक्षा बोली….देखिए अनजाने में बीना आपके फोन करने के अभिप्राय को जाने बगैर मैने आपके मन को अत्यधिक ठेस पहुचाया, आहत किया है आपके अंतरमन को चोटिल किया है, अपने इस दुस्साहस, के लिए, इस अपराध के लिए मैं खुद को आपकी अपराधिनी मानती हू और आप से क्षमा मांगती हूँ, एक बात और आज तक आपने जिस अनजाने रिश्ते, जिन मनोभावों के तहत मुझे फोन किया उन्हीं रिश्तों, उन्हीं भावनाओं की कसम अगर आपने हमें फोन करना बंद किया या इस अनचाहे ही सही किन्तु जुड़ चूके इस संबंध की कसम मैं अन्न जल त्याग कर अपनी जान दे दूंगी।
संजू जो कभी केवल टाईमपास के लिए, परेशान करने की मंशा से फोन किया करता था नजाने कब आकांक्षा को चाहने लगा , उसे भी पता नहीं था किन्तु आज जैसे ही आकांक्षा ने मरने की बात की संजू विह्वल हो गया , बोला…. नहीं नहीं आकांक्षा जी ऐसा कुछ मत करीयेगा आपको मैं साम में अवश्य ही फोन करुंगा तबतक आप भी तैयार होकर विद्यालय जाईये और एक बार फिर से अपना रिजल्ट अपनी आंखों से देख आईये। इन्हीं बातों के साथ फोन डिस्कनेक्ट हो गया।

साम को संजू ने जैसे फोन किया एक ही रिंग में फोन रिसीव हो गया मानो आकांक्षा संपूर्ण दिवस उसी फोन के इंतजार में बैठी रही हो, फोन उठाते आकांक्षा चहकते स्वर में बोली… कौन….।? ..मैं आपका बद्तमीज…. इधर से संजू बोला
अरे बद्तमीज जी आपका कोई A B C D कुछ भी नाम तो होगा ?….संजू बोला आपको जो नाम बेहतर लगे वहीं रख लीजिए । उस दिन आकांक्षा से संजू को एक नाम दिया “सचिन”
उसी दिन से संजू आकांक्षा का सचिन बन गया….नाम देने के बाद आकांक्षा ने गाने सुनाने की जीद्द सी पकड़ ली जबकि संजू और गाना एक नदी के जैसे दो किनारे, वह तो शुरू- शुरू में चुटकी लेने या फिर परेशान करने के लिए जिन बातो का प्रयोग करता था आज वो जीव का जंजाल बन गईं , खैर मरता क्या न करता संजू ने गाना सुनाया ….मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया….पता नहीं आकांक्षा को यह गीत कितना प्रिय लगा वह और गाने सुनने की जीद्द करने लगी।
ऐसे ही एक दो दिन गुजरे नंबरो का आदान प्रदान हुआ
अब तो आकांक्षा के पास एक हीं काम था फोन करना और गाने की फरमाईश करना,
संजू के पास जब गानों का स्टाक समाप्त हो गया तो उसने रेडियो खरीदा , बनारस में तब बीबीदभारती चौबीसों घंटे बजती और एक से एक पुराने गाने बजते वह रेडियो से गाने सुन डायरी में लिखता और आकांक्षा को सुनाता कभी आकांक्षा उसे अपने स्वर में गाना सुनाती, समय ऐसे ही पंख लगाकर उड़ता रहा लेकिन उन दोनों का समय तो जैसे थम सा गया था वे तो बस गाना सुनने और सुनाने में लगे रहे। सारी सारी रात फोन पर लगे रहते एक सो जाता तो दुसरा फोन कान में लगाये उसके जागने का इंतजार करता ।

उस इंतजार में भी कितनी आत्मिक शान्ति थी ऐसे ही दो वर्ष बीत गये एक दिन आकांक्षा ने संजू से पूछा……सचिन जी हमारे लिए आपके दिल में दोस्ती के अतिरिक्त भी कुछ है या नहीं ,
संजू….. मेरे दिल में तुम्हारे लिए असिमित प्यार है किन्तु मैं इस लिए नहीं बोल पाया कहीं तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार नहीं हुआ तो तुम कहीं बुरा मान कर बात करना बंद न कर दो।
आज दो वर्षों बाद दोनों ने एक दूसरे को “आई लव यूं ” बोला।
एक दिन फिर से आकांक्षा ने संजू से पूछा.. सचिन जी क्या आपको हमसे मिलने का मन नहीं करता, हमें देख कर यह जानने का विचार मन में नहीं आता मैं कैसी हूँ क्या मैं आपके लायक हूँ भी या नहीं, सुन्दर हूँ या असुन्दर, गोरी हूँ या काली , पतली हूँ या मोटी,बड़ी हूँ या नाटी …..आज तक आपने मिलने के लिए एक बार भी नहीं कहा।

संजू …आकांक्षा मैने तुम्हे तुम्हारे गुणों से , तुम्हारे निर्मल, कोमल, भावुक, हृदय से प्यार किया है तुम्हारे रुप से हमें कोई फर्क नहीं पडता वो जैसी भी हो हमें स्वीकार्य है, रही बात मिलने की तो मन किसका नहीं होता लेकिन वही बात है कहीं तुम्हें कोई परेशानी न हो इसीलिए मिलने को नहीं बोला।
खैर छोड़ो इन बातों को बोलो कब और कहा मिलना है..?

मिलने का स्थान तैय हुआ दोनों ने एक दुसरे को अपनी पहचान बताई , दोनों ही के लिए आज की रात बहुत भारी थी होय बीहान, होय बीहान के चक्कर में दोनों ही शायद रात भर सो न सके।
वैसे तो मिलने का समय बारह बजे गर्ल्स कॉलेज के थोड़े से आगे का था किन्तु संजू सुबह छः बजे हीं अपने खटारा साईकिल जिसमे पिछड़े तीन वर्षों से ब्रेक तक नहीं थी लगभग सात या कि. मी. का रास्ता तकरीबन 20 या 25 मिनट में ही तय कर लिया था सुबह से वहां बैठे – बैठे दो बज गये कालेज की सभी लड़कियां चली गयीं लेकिन आकांक्षा नहीं मिली, साम को फोन आया भैया आ गये थे इसी कारण मै मिल ना सकी, कल फिर वहीं मिलेंगे ।

दूसरे दिन भी यही प्रक्रिया दुहराई गई , दो दिन की नाकामीयों के बाद तीसरे दिन जाकर दोनों मिल पाये । मिलने मिलाने के इस शिलशिले को लगभग कुछ ही दिन हुए होंगे कि आकांक्षा के घर वालों को इस बात की भनक लग गई, खैर मां बाप की एकलौति बेटी थी घर में सभी उसे बहुत प्यार करते थे थोड़े से समझाने बुझाने के बाद जब आकांक्षा संजू से अलग होने को तैयार नहीं हुई तब आकांक्षा के घर वाले इस रिश्ते को तैयार हो गये किन्तु शर्त रखी गई कि जैसे हमे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं वैसे संजू के घरवालों को भी यह रिश्ता मान्य होना चाहिए।

संजू ने अपने घरवालों को सारी बाते बताई किन्तु इस अन्तरजातीय विवाह के लिए संजू के घर वाले तैयार नहीं हुए , संजू जहाँ ब्राह्मण कुल से था वहीं आकांक्षा क्षत्रिय परिवार से थी, इस सामाजिक मान्यता ने दोनो के रिश्ते में बाधा खड़ी कर दी, संजू ने आकांक्षा को बहुत समझाया घरवाले तैयार नही कोई बात नहीं हम कोर्ट या मंदिर में शादी कर लेंगे किन्तु आकांक्षा इसके लिए तैयार नहीं थी , उसका कहना था मां बाप व परिवारजनों को दुखी कर कोई भी इंसान जीवन भर सुखी नहीं रह सकता अतः यह शादी कभी भी सफल नहीं हो पायेगी।
इधर संजू के घरवाले इस कहानी को जानने के बाद आनन फानन में संजू की दूसरे जगह शादी तय कर दी, शादी के दिन भी संजू ने आकांक्षा को फोन किया …देखो आकांक्षा मैं गजला सेहरा से सज दुल्हा बन गया हूँ बारात निकलने वाली है अब भी मौका है एक बार हां बोलो दुनिया की कोई भी ताकत मुझे तुम्हारा होने से रोक नहीं पायेगी मैं इसी परिधान में अभी यहाँ निकल कर तुम्हारे पास आ जाऊंगा फिर कल ही मंदिर में या फिर कोर्ट में शादी कर लेंगे ।
आकांक्षा…..नहीं नहीं नही यह तो और भी गलत होगा जो लड़की आज वहाँ आपके नाम का मेंहदी लगा कर बैठी है जरा उसका भी सोचो आखिर उसकी क्या गलती, लोग तो उसी को दोष देंगे कोसेंगे , नजाने कौनसा अवगुण था इस लड़की में जो बारात निकलने के समय दुल्हा भाग गया, सचिन जी औरत गलत हो या नही हो हमेशा यह समाज दोषी उसी को मानता है, आप जहाँ जा रहे है जाईये शादी कीजिए, मेरी दुआयें आप दोनों के साथ है , इतनी बात कहते कहते आकांक्षा का गला भर आया संजू उसके रुदन को सुन कर ब्यथित न हो जाय उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

इधर आकांक्षा अपने जगह, अपने बातों पर अड़ी रही उधर संजू के घरवाले प्यार के दुश्मन बने रहे अतः जात- पात के इस मनोबृति ने दो प्यार करनेवालों को हमेशा के लिए एक दुजे से अलग कर दिया।
संजू की शादी हो गई आज उसका भरापूरा परिवार है लेकिन आकांक्षा ने यह कहकर की प्यार जीवन में बस एक हीं बार होता है शादी करने से इनकार कर दिया , समय निकलता चला गया आज दोनों जीवन के दुसरे या तीसरे पड़ाव पर खड़े है।
वैसे देखने में तो दोनों ही खुश है संजू अपने बालबच्चों के साथ रहता है वहीं आकांक्षा अपने माँ बाप के साथ , आज आकांक्षा प्रोफेसर है लेकिन उसने शादी नहीं की……आज भी वह अपने सचिन की आकांक्षा ही है , उसने अपने नाम के साथ किसी और का नाम कभी नही जोड़ा,

दोस्तों अगर मैं इस कथानक को सुखद अंत देने का प्रयास करता तो उस प्रेयसी के निर्मल भावनाओं को आहत करता उसके आजीवन एक प्यार के नाम इस अविवाहित रहने के व्रत का अपमान करता और अगर सुखद अंत नहीं दे पाया तो अपने पाठको के मन को चोटिल करता हूँ अब आप पाठकगण ही बताये मैं क्या करूं।
धन्यवाद।
.©®…………
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
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