“”””अधिकार””””””
कर हिस्सा रत्ती-रत्ती, बिखर रहा परिवार है।
यह कैसा हक, कैसा अपनों का विचार है।।
जाति धरम् आरक्षण पर, जारी सतत् लड़ाई।
ग्रन्थ ध्वज राष्ट्रगान पर, होते …रोज वार है।।
पलायन करते रोज, ………लोग गांव के मेरे।
काम नहीं , योजन सौ दिन का रोजगार है।।
पढ़ना लिखना ना आए, शत-प्रतिशत परिणाम।
यहां हर बच्चे को निज शिक्षा पर अधिकार है।।
स्वतन्त्र हैं बस, मरजी का कुछ कर सकते नहीं।
दे स्वतंत्रता, शिकंजा…….कसे हुए सरकार है।।
जन-जीवन त्राहि त्राहि, सभी तरफ अन्याय है।
पीड़ित जाए जान से, सुख से …अत्याचार है।।
सत त्रेता द्वापर नहीं, कलयुग है यहां, माँ।
बेटा घर नहीं, वृद्धाश्रम तेरा ….संसार है।।
कब्र में लटके पैर तिरे, फिर भी पाल रहा।
खुश रह माँ, समझ यह बेटे का उपकार है ।।
तुम्हारे साथ रह मानवता सीख रहा “जय”,
जो तुम दोगे, मैं दूंगा तुम्हें , उपहार है।।
संतोष बरमैया “जय”