अधिकार और कर्तव्य/गणतंत्र के कसीदे.
मनाता तो हूँ पर मना कहाँ पाता हूँ.
आज की जय जयकार
कल फिर वही अत्याचार व्याभिचार.
खड़े होकर द्वार से खाली लौट आता हूँ.
जिनकी हूँ रोजीरोटी रजाई तक सजाता हूँ.
साहब नहीं है आज ..कल आना.
ये सुन सुनकर हररोज़ लौट आता हूँ.
किसी के कहने पर लिफाफे लेकर पहुंचा.
आओ बैठो साहब ..बड़े सम्मान पाता हूँ.
कैसे मनाता उसे जिसे हररोज़ रूठे पाता हूँ.
सरकारी दफ्तर है साहब यहां अफसर नहीं हूँ.
रोब दिया जिस जनता ने बेखौफ उन्हीं पर हूँ.
चोर उच्चके बदमाशों महाबलियों से तो मैं भी
खौफ खाता हूँ.
पेट जो भरते है उन्हीं की जेब टटोलता हूँ.
खुदा का वास्ता उन्हें जो अमल करते है.
हम तो हकीकत कम अमलीजामा पहनाते हैं