अधरों से अधरों का मिलन
प्रिये!
याद मुझे उस पुण्य पथ का
जिस पथ चले थे दोनों ही
अधरों से अधरों का
मिलन हुआ था
जहाँ….
तपे थे दोनों ही
जिस्म नही,
बस प्रेम तपा था
तप कर फिर वो
कनक बना था
एहसासों का फिर
उसे बना आभूषण
ख्वाबों का मंगलसूत्र
बाधां था
पर क्या कहूँ
डोर दुर्बल ?
या
बंधन था ढीला ?
जो
चमक कनक का
हो गया फीका
मंज़िल प्रेम का मिला नही
तुम छोड़ गये मुझे
वो
पुण्य पथ अकेला
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