” अधरों पर मधु बोल “
गीत
पुलक गात पर अरुणिम लाली ,
अधरों पर मधु बोल !
हँसी बिखेरे , आँगन में तू ,
हिंरणी सी मत डोल !!
नज़रें टिकी हुई हैं हम पर ,
दुनिया भर की ऐसी !
आँखों का काजल कह देगा ,
तेरी सब मदहोशी !
खुद को ज़रा बांध कर रख ले ,
बंध न सारे खोल !!
अभी सपन बाँधें हैं हमने ,
रंग नये भरना है !
समय सदा करता है कलकल ,
लहरों से डरना है !
खुशियाँ यहाँ ठहरती कम है ,
मिली सभी अनमोल !!
यहाँ गमकती पुरवाई है ,
और चमकती रातें !
दिन चुटकी में ऐसे बीतें ,
समझ नहीं कुछ पाते !
जो भी हासिल हो पाया है ,
करती रह तू तौल !!
साज , सिंगार , बांकपन तेरा ,
खूब कहर ढाता है !
बंजारिन आशाऐं हँसती ,
मन तब घबराता है !
जो भी पाया , वह बटोर लें ,
यहाँ खूब हैं झोल !!
रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )