भयानक स्वप्न
सूनी सूनी राहों पर देखा ,बड़ा क्रूर था मंजर वो,
अपनी ही बेटी के सीने में ,भोक रहा था खंजर वो।
देख के उसकी मानसिकता,दया आ गयी मुझको,
मैं बोला प्रभु से भगवन!क्यूँ बनाया बेटी उसको।
आँख से आंसू छलक पड़े,चीख को उसकी सुनकर,
लेकिन जब तक मैं पहुँचा,कृत्य कर चुका था वो बदतर।
चीख निकल पड़ी मेरी,खून से लथपथ देख कर उसको ,
लेकिन अगले ही क्षण मैंने,बिस्तर पर पाया खुद को ।
उठ कर आया देखा बाहर,वो अपनी बेटी को खिला रहा था,
देख कर उसका स्नेह,हृदय मेरा भी खिल खिला रहा था।
बड़ा भयानक स्वप्न था वो,ऐसा कभी न हो जीवन में ,
गोद उठा उस बच्ची को,मैं सोच रहा था अपने मन में।