अद्भुत मातृभूमि हमारी।
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”
अर्थात् जननी और जन्मभूमि ये स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है। जननी जो जन्म देती है और जन्मभूमि जिस धरा पर हम जन्म लेते हैं बड़े होते हैं और जीवन मूल्यों को सीखते हैं। दोनों ही मानव के लिए प्राण समान प्रिय होती है ।मेरी यह कविता मातृभूमि के चरणारविन्द में समर्पित है।
आज सजी है महफ़िल सारी, स्वर्ग से सुंदर मातृभूमि हमारी।
जिस पर हमनें जन्म लिया है, जिस पर हमनें खेला है।
उस स्वर्णिम भारत वर्ष का गौरव, सारे जग में फैला है।
सूर्य चंद्र मुकुटमंडल हैं जिसके,और करधनि पर्वतराज हिमालय।
सागर जिसके चरणों को धोये, ऐसी अद्भुत मातृभूमि हमारी।
यही मर्यादापुरुषोत्तम राम है जन्में, यही लीलापुरुषोत्तम श्याम हुए।
आंचल में तेरी मां धरती, धर्म कर्म प्राकट्य हुए।
लहू तेरा है…शौर्य तेरा है… ,तू वीरों की शाश्वत जननी।
सत् रज् तम् है रूप तेरे मां, तू है शांतिस्वरूपा प्रकृति।
ज्ञान भी तू है, विज्ञान भी तू है, तू है विश्वपटल की तरिणी ।
जिस भूमि पर देव भी जन्में, ऐसी अद्भुत मातृभूमि हमारी।
गंगा यमुनी सभ्यता जिसकी, आत्मा जिसकी एकता है।
सर्व धर्म समभाव जहां का, मूल मंत्र जो बिखरा है।
नीति जहां की धर्मोचित्त है, संस्कृति संस्कारों की जननी।
ज्ञान जहां का गंगा जल सा, संत समागम रूपी धरती।
सहनशीलता गौरव जिसका, ममता जिसकी काया है।
सृष्टि का जहां ज्ञान है उपजे, ऐसी अद्भुत मातृभूमि हमारी।
जय हिन्द जय भारत।
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