अदूरदृष्टि
कहीं बाढ़ की विभीषिका है
सूखे के हालात कहीं ।
स्वप्रेरित सुचिता होती तो
होते ये आपात नहीं ।
कैसे लूटें देश, भरें घर
सबकी थी रणनीति यही |
बाढ़ आपदा, और अवर्षा
दोनों जहँ की तहाँ रही ।
बाँधा नहीं बरसते जल को
भूमि नहीं पी पाई पानी ।
सूखा आमंत्रित करने को
हमने ही खुद लिखी कहानी ।
‘सगर’ मां गंगा को लाये
आज तट उसके मटमैले ।
शहरी नालों के मिलने से
जल जीव सब हुए विषैले |
बाढ रोकने नहर जाल से
खेत खेत पानी पहुँचाते ।
जोड़ दिया होता नदियों को
नहीं देखते दिन ये आते ।