अदालत
तेरी अदालत, कब लगती है,कहाँ लगती है,
फैसले हमारी मर्जी के खिलाफ होते है ..
हम चाहते हैं, तब नहीं आते, तू चाहे तत्काल
आते हैं,
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भगवान को बनाया हमने, मिटा नहीं सकते,
ईश्वर सृष्टि का हिस्सा है, जो पसंद है,चीज हमारी है, नापसंद को हम ईश्वर नहीं मानते.
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ये प्रकृति निर्भर नहीं, किसी और पर,
सभी जील इस पर निर्भर है, लगती है
पौध यहाँ पर रोज, जो बोये वही काटता है.
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जब संसार में मन पर अध्ययन चल रहा था,
चंद लोग जातीय विशाद बिछा रहे थे,ःः
सनातन, शाश्वत सत्य के नाम पर.
ब्रह्मा के अंगों से वर्ण स्थापना कर रहे थे.
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लगी जो आज ये अदालत है, उस पर कमजोर, असहाय, दमित ऐतबार करते है.
जो है समर्थ, पूँजीपति, बाहुबली खुद अदालतें लगाते है, फैसले भी, खुद ही करते है.