अदरक वाला स्वाद
हास्य
गधा गदहिया चल पड़े, झोला लिए बाजार।
लाएँगे बाजार से, अदरक का आचार।।
बंदर में था मद भरा, और भरी थी ऐंठ।
दिल्ली में लगती नही, इससे अच्छी पेंठ।।
देख सभी को खोंखता, और चलाता कान।
हो नही सकती पेंठ में, मुझसे बड़ी दुकान।।
बंदर ने जब कह दिया, आओ गधा महान।
सुनकर गधा तुनक गया, करने लगा बखान।
लाज-शर्म आती नही, कुछ तो सीखो मान।
गधा मुझे तू कह रहा, जग करता सम्मान।।
बंदर यह कहने लगा , कर लाला व्यवहार।
गलती मुझसे हो गयी, छोड़ो भी तुम यार।।
भाभी सहित मैं करता, आपका अभिनंदन।
आओ बैठो चाय लो, प्रिय बैसाखनन्दन।।
मुझे समझ नही मूर्ख तू, नही समझ लाचार।
पैसे लेकर दे मुझे, अदरक का आचार।।
मैं व्यापारी हूँ बड़ा, है वर्षों का व्यापार।
कटहल नीबू आम के, मिलते सभी आचार।।
मुझे मजाक करो नही, न ऐसा अत्याचार ।
यहाँ मांगता कौन है, अदरक का आचार
हँस कर गधी ने कह दी, एक पुरानी याद।
बंदर जाने क्या भला!, अदरक वाला स्वाद।।
इसी बात पर बढ़ गया, इतना वाद-विवाद।
कोर्ट-कचहरी जाएगी, बंदर की फरियाद।।
@दुष्यन्त ‘बाबा’
मानसरोवर, मुरादाबाद