अदमी अउर सरप
यदि सँपवा विष ना पावत,
यदि ओके डंसे ना आवत।
लोग पहिन के गटई में घुमते,
बेचारा माला बन जावत।
संपवा मनई के न नाता भवेला,
तब मनई विष कहाँ से पावेला?
देखि के विष उगलत मनई के,
सँपओं भी मन घबरावेला।
सपवां तs हवे टेड़ा मेंढा,
घुसे बिल सीधा हो जाय।
पर कुछ मनई के अदतिया,
हरदम ही में टेढ़े रह जाय।
होला जब विषाक्त सँपवा,
छोड़ेला केचुलि बारम्बार।
पर विष निगलल देखि मनई के,
सपवां भागे अपरम्पार।
——————————————-
अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज, कुशीनगर