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7 Jan 2022 · 1 min read

अदब ही खेत है मेरा

अगर मैं इक फ़साना हूँ तो ये उनवान है मेरा
तेरी जागीर से प्यारा मुझे ईमान है मेरा

बज़ाहिर यूँ तो मैं हर हाल में दिलशाद हूँ लेकिन
चले आओ कि ख़्वाबों का महल सुनसान है मेरा

ग़मों की तेज़ लहरों पर लिए कश्ती पुरानी हूँ
समन्दर देखकर ये हौसला हैरान है मेरा

जहाँ संसार के सारे सहारे छूट जाते हैं
वहीं माँ की दुआओं में खड़ा भगवान है मेरा

उगाता हूँ यहाँ मैं गीत-ग़ज़लों की हसीं फसलें
अदब ही खेत है मेरा, अदब खलिहान है मेरा

उसी का नाम लेकर जागता हूँ और सोता हूँ
मगर इस बात से दिलबर अभी अनजान है मेरा

कभी जंगल, कभी सहरा, कभी ये झील सी लगतीं
‘असीम’ आँखें तुम्हारी हैं कि ये दीवान है मेरा

– शैलेन्द्र ‘असीम’

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