अदब ही खेत है मेरा
अगर मैं इक फ़साना हूँ तो ये उनवान है मेरा
तेरी जागीर से प्यारा मुझे ईमान है मेरा
बज़ाहिर यूँ तो मैं हर हाल में दिलशाद हूँ लेकिन
चले आओ कि ख़्वाबों का महल सुनसान है मेरा
ग़मों की तेज़ लहरों पर लिए कश्ती पुरानी हूँ
समन्दर देखकर ये हौसला हैरान है मेरा
जहाँ संसार के सारे सहारे छूट जाते हैं
वहीं माँ की दुआओं में खड़ा भगवान है मेरा
उगाता हूँ यहाँ मैं गीत-ग़ज़लों की हसीं फसलें
अदब ही खेत है मेरा, अदब खलिहान है मेरा
उसी का नाम लेकर जागता हूँ और सोता हूँ
मगर इस बात से दिलबर अभी अनजान है मेरा
कभी जंगल, कभी सहरा, कभी ये झील सी लगतीं
‘असीम’ आँखें तुम्हारी हैं कि ये दीवान है मेरा
– शैलेन्द्र ‘असीम’