— अत्याचार —
रोज रोज देख
कर मन तड़प
रहा है
बेजुबान पर
चला कर चाकू
वार हो रहा है
निहथे पर हमला
हर रोज हो रहा है
खून की नदियो
का व्यापार हो
रहा है
बेजुबान के साथ
साथ महिला पर
भी अत्याचार
घोर हो रहा है
आदमी अब खुद
ही शेर हो रहा है
कोई सोती पर
वार कर रहा है
कोई सरे राह
कत्ले आम कर
रहा है
क्या मिल रहा है
खून खराबा कर के
क्यूँ मौत को
इन्सान अपने
हाथ में धर रहा है
जीवन जीने का
हक अगर तुझे
है, तो तू उसका
हक क्यूँ छीन
रहा है, गर
चल जाये चाकू
तेरी भी गर्दन
पर, तो क्यूँ
नहीं ये सम्झ रहा है
देख देख कर
दुनिया की
ये लीला दिल
में नश्तर चुभो
रही है, हे उपर
वाले क्यूँ नहीं
इन जैसो को
बुद्धि सद बुद्धि
आ रही है…………..
अजीत तलवार