“अत्याचार क्यों बेटियों पर”
कैसे काल-खंड में हम जी रहें,
देखने को मिलती जहाँ करुणा
से लथपथ तस्वीरें।
मानवता जहाँ हो रही पल-पल
शर्मसार,
हो रहा नित-प्रतिदिन बेटियों
पर अत्याचार।
व्यभिचार की आग में नित
जल रही बेटियाँ,
उपभोग की वस्तु क्यों बनाई
जा रही बेटियां।
कहाँ दफन कर दिया हमनें अपनी
संवेदना,
क्यों नही दिखती हमें बेटियों की
वेदना।
बलात्कार की आग में झुलस कर,
जीती है हर रोज मर-मर कर।
उनके जमीर का कर मान-मर्दन,
कैसे लाएँगे इस अघोरी संसार मे
परिवर्तन।
समझ उनको लाचार क्यों,
बेटियों के जिंदगी से हो रहा
खिलवाड क्यों।
लक्ष्मी-दुर्गा का स्वरूप मानकर
करते है जिनकी पूजा,
कुण्ठित समाज हो गया उनके
देह का भूखा।
राम -कृष्ण की धरती पर हो रहा
है कैसा अमंगल,
कब लोग समझेंगे बेटियां है
ईश्वर की अनमोल धरोहर।
(स्व रचित) आलोक पांडेय गरोठ वाले