अतीत
अतीत
बीते बसंत का
भूला हुआ गीत हूँ
कैसे कहूँ, मैं
तेरा मनमीत हूँ
प्राप्य पहर प्रणय के
पलभर में व्यतीत हुए
मृदुल भाव अनुनय के
साँसों में घुल संगीत हुए
तान वो अब एक विस्मृति
बन्धित हृदय के कोलाहल में
होगी धृष्टता वो स्मृति
संचित पुलक कौतूहल में
वर्तमान होता यथार्थ
लक्षित गति जीवन में
अनगढ़ भूत-विवेचन व्यर्थ
भरता विषाद तन मन में
लय छिन्न-भिन्न छितराई
अगेय संगीत हूँ
पिछले पहर की परछाई
मैं अतीत हूँ।
-©नवल किशोर सिंह