अति सर्वत्र वर्जयेत्
विश्व मंच अब सिमटा ऐसा,
लगे यूरोप भी अपने गांव ही जैसा
वैश्विक साझेदारी, व्यापक असर_ इंटरनेट
सच बता :तू औषधि है या ज़हर ?
तुझ में उलझे नन्हें हाथ ;
तूने लीले आत्मिक क्षण,
तुझमें सिमटे सारे रिश्ते,
तुझमें डूबे कोमल मन।
ज्ञान की बहती अमृत धारा
या तू नैतिक-पतन सा है कहर?
विश्व स्वरूप की ताजा खबर ,
या व्यंजन पकाना आलू -मटर ,
शरीर की संरचना पर शोध ,
अथवा कुरीतियों का प्रबल विरोध ,
साहित्य ,कला, विज्ञान, संगीत,
वेशभूषा, खानपान ,जीने की रीत !
औषधीयों – का गहन अध्ययन
या योग,खेल-कूद,चिंतन -मनन I
ब्रह्मांड का वेदत्व और अधिगम
इंटरनेट से पाओ बिन श्रम ,
नश्वर है यह, रहेगा ही ,अनेकों चुनौतियां समेत-
पर याद रहे यह अनुपम सीख- अति सर्वत्र वर्जयेत् I