अति विशिष्ट जन उपचार …..1
आमतौर से आमतौर पर जिला स्तर पर कार्यरत किसी काय चिकित्सक ( फिजिशियन ) के दिन की शुरुआत अति विशिष्ट जनों के उपचार से शुरू होती है जिसमें नियमानुसार उनके निवासों के चक्कर काटने में ही ओपीडी का आधा समय बीत जाता है । ऐसे ही किसी दिन की शुरुआत करते हुए डॉक्टर पंत जी कोठी पर मरीज देखने के बुलावे पर वहां पहुंच गए ।भव्य लान और फूलों की क्यारियों आदि को पार कर पहले सुरक्षाकर्मियों का घेरा पार किया फिर बाहर अर्दली मिले उन्हें पार कर आशुलिपिक के कार्यालय के बाहर आगंतुक कक्ष में कुछ देर विश्राम करने को कहा गया फिर अंदर से एक अनुचर आया जो उन्हें कुछ कमरे और गलियारे पार कराता हुआ एक आंगन के प्रांगण में ले जाकर उनको खड़ा कर दिया उसके पश्चात थोड़ा पीछे हटकर कमर तक झुक कर एक फर्शी सलाम बजा लाने के अंदाज में हाथ को जमीन की ओर इशारा करते हुए बोला
‘ हुज़ूर खाती नहीं है । ‘
डॉक्टर पंत ने देखा वहां आंगन के फर्श पर एक नीले रंग के टब में ताज़ी हरी बरसीइंग की बारीक कटी हुई कुट्टी चारे के स्वरूप रखी हुई थी तथा पास ही लगे एक छोटे खूंटे से बंधी भूरे लाल रंग की गाय अपनी बड़ी-बड़ी बिल्लोरी जैसी आंखों से प्रश्नवाचक मुद्रा में पंत जी की ओर देख रही थी ।
अनुचर की इस बात को सुनकर पंत जी बोले
‘लेकिन मैं तो इंसानों का डॉक्टर हूं ! ‘
इस पर अनुचर बोला सॉरी सॉरी सर आप इधर से आइए और फिर उनको कुछ गलियारे और कमरों में से घुमाता हुआ एक बैठक खाने में ले जाकर बैठाल दिया । कुछ देर पश्चात एक दूसरा अनुचर एक ट्रे में एक गिलास नींबू पानी लाकर उनसे पीने का आग्रह करते हुए रख गया और उन्हें सूचना दी कि मैडम अभी आपको दिखाने आ रही हैं । कुछ देर पश्चात उस बैठक वाले कमरे मैं ओजस्वी गृह स्वामिनी ने प्रवेश किया और एक अभिवादन के साथ स्थान ग्रहण करने के पश्चात डॉ. पंत जी से बोलीं
‘ आजकल कुछ भूख नहीं लगती , ठीक तरह से खा पी नहीं पाती हूं। ‘
पंत जी कहीं अपने मन के अंतर्द्वंद से जूझ रहे थे
‘ डॉक्टर बदल जाने से मर्ज़ नहीं बदलता या मरीज़ बदल जाने पर डॉक्टर बदल जाता है !