अतिवृष्टि
बदरी बरसी व्योम से,छेद हुआ आकाश।
मही आज जलमग्न है,हुआ प्रलय आभास।
हुआ प्रलय आभास,गांव-शहरों में पानी।
नहीं जगह बस एक, सभी की यही कहानी।।
कहै अटल कविराय,साथ नहिं देती छतरी।
उफने पौखर ताल,वेग से बरसी बदरी।।
बदरी बरसी व्योम से,छेद हुआ आकाश।
मही आज जलमग्न है,हुआ प्रलय आभास।
हुआ प्रलय आभास,गांव-शहरों में पानी।
नहीं जगह बस एक, सभी की यही कहानी।।
कहै अटल कविराय,साथ नहिं देती छतरी।
उफने पौखर ताल,वेग से बरसी बदरी।।