अतिथि तुम कब जाओगे
“माँ जी आप कुछ दिन आपने रिश्तेदारों के यहाँ से हो आइये , दिन रात एक ही घर में रहते रहते भोर हो गई होंगी “। शिला ने मुँह बनाते हुए अपने सासु मां से कहा।
” कैसी बात कह रही हो बहू अभी कुछ दिन पहले ही तो मैं अपने भाई के यहाँ से आई हूँ वह भी बीस दिन रह कर। अब बार – बार दूसरे के घर जाकर रहना अच्छा लगता है क्या ”
“तो क्या हुआ माँ जी अगर आप मामा जी के यहाँ नहीं जा सकती हैं तो बुआ जी के यहाँ तो जा ही सकती हैं उनके यहाँ ही चले जाइये।”
“बहू ,पिछले महीने ही तो मैं उनके यहाँ से आई हूँ! और अब फिर से उनके घर जाऊंगी क्या कहेंगे वह लोग की अपना घर छोड़कर दूसरे के घर में पड़ी रहती हूँ। और मेरे यहाँ रहने से तुम्हें क्या समस्या हो रही है जो बार बार मुझे रिश्तेदारों के घर भेजती रहती हो?
“वह इसलिए मां जी क्योंकि मैं आपकी सेवा करते करते थक चुकी हूँ। और हमारी अभी नई शादी हुई है । आपकी वजह से हम एक दूसरे को टाइम भी नहीं दे पा रहे हैं। इसलिए आप कुछ दिन अपने रिश्तेदारों के यहाँ ही होकर आइये। मैंने आपका समान पैक कर दिया है !आज शाम की ट्रेन है विवेक (शिला का पति) आपको ट्रेन पर बिठा देंगे। और हाँ ,वहाँ पहुंचकर हमें फोन पर बता दीजियेगा की आप बुआ जी के यहाँ पहुँच गई हैं।
आखिरकार ना चाहते हुए भी सुषमा जी को अपने बेटे और बहू के कारण रिश्तेदारों के यहाँ जाना पड़ा। ट्रेन पर बैठने के बाद जब विवेक उन्हे छोड़कर चला आता है तो वह मन ही मन इन दोनों (विवेक और शिला) को सबक सिखाने का ठान लेती हैं । और फिर वह अपनी ननद के यहाँ न जाकर बहन के यहाँ चली जाती हैं। और फ़िर शुरू होता है माँ जी का खेल।
कुछ दिन बीत जाने के बाद शिला के घर एक मेहमान आतें हैं जो रिश्ते में विवेक के दूर के मौसा जी लगते हैं! और उनकी उम्र लगभग ६५ वर्ष होती है। शुरुवात में तो शिला और विवेक उनकी खातीदारी बहुत अच्छे से करते हैं लेकिन धीरे धीरे वह इनसे परेशान होने लगते हैं। क्योंकि मौसा जी अपने बच्चों से सेवा करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं । काफी समय बीत जाने के बाद मौसा जी अपना बेग बाहर निकालते हैं ये देखकर शिला खुश हो जाती है की अब उसे मौसा जी से छुटकारा मिलेगा। लेकिन मौसा जी शिला से कहते हैं –
बहू ये कुछ कपड़े हैं जो गंदे हो गयें हैं जब धोबी आये तो उन्हें ये कपड़े दे देना साफ करने के लिए। और हाँ उसे कहना जरा ठीक से साफ करें बहुत दिन से धुले नहीं हैं न गंदे हो गयें हैं। ”
मौसा जी की बातों को सुन शिला गुस्से से लाल हो जाती है की अब तो ये चार पांच दिन यहीं टिकेंगे। लेकिन करें तो करे भी क्या वह मौसा जी के हाँ में हाँ करके किचन में चली जाती है।
तभी वह मन ही मन सोचती है ये मेहमान आते ही क्यों हैं दूसरों को परेशान करने के लिए! इस उम्र में तो इनको अपने घर में पड़ा होना चाहिए न जाने कैसे हैं इनके बेटे बहू जो इस उम्र में भी दूसरों के घर भेज देते हैं। तभी अचानक उसके मन में माँ जी का ख्याल आता है और उसे अपनी गलती का पछतावा होने लगता है। फिर झट से शिला अपने सासु माँ को फोन करती है और उन्हे अपने घर वापस आने को कहती है। उसकी बातों को सुन सुषमा जी समझ जाती है की अब इन्हें अपनी गलती का अहसास हो चुका है।
दूसरी तरह विवेक को भी अपनी माँ की बहुत याद आ रही होती है । उसे एहसास होता है की उसकी माँ भी किसी पर बोझ बनकर पड़ी होगी। लेकिन शिला के नाराज हो जाने डर से वह शिला से कुछ कह नहीं पाता है। सुषमा जी का मकसद पुरा हो जाता है और मौसा जी तबियत खराब होने का बहाना बनाकर अपने बेटे को बुलाकर अपने घर चले जाते हैं। शाम को जब विवेक घर आता है तो घर में किसी को नहीं देखता है लगभग दो घंटे बाद सुषमा जी शिला के साथ घर आती है ये देखकर विवेक खुश हो जाता है और फिर सुषमा जी का पैर पकड़कर माफी मांगने लगता है। बच्चों को उनकी गलती का अहसास हो जाता है ये देखकर सुषमा जी उन्हें माफ कर देती हैं।
अतिथि देवता के समान होते हैं किंतु वही अतिथि अगर दो -चार दिन के जगह दस -बीस दिन रहने लगे तो
स्वागतकर्ता को वही अतिथि राक्षस प्रतीत होने लगते हैं।
समाप्त ******
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार