Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Sep 2017 · 4 min read

अतिथि तुम कब आओगे

अतिथि तुम कब आओगेः

शायं का समय था। मैं एक पक्के आलीषान मकान में उक्त प्रहर के बीत जाने का इन्तजार कर रहा था। काली डामर की सड़को पर तेज रफ्तार से वाहन आवा-गमन कर रहे थे। परन्तु इस तेज रफ्तार जिंदगी में भी एक उबाउपन था। एक अहसास जो रह-रह कर कचोट़ता था, कि गप्पू की अम्मा यदि आज साथ होती तो अनुउत्तरित सवालो का जवाब मिल जाता। वो गप्पू के बच्चे की देखभाल करने चण्डीगढ़ गयी है, आखिर क्यो मुझे उनकी बीती बातें कुरेदिती है। शायद मेरी स्मरण शक्ति आज भी मजबूत है, परन्तु मै अक्षम हो चुका हूॅ। 65 वर्ष का बूढ़ा हो चुका हूॅ। मुझसे उम्मीद भी क्या की जा सकती है। पहली बार जब गप्पू की अम्मा को देखा था, तब वह मात्र 23 बरस की थी, चेहरे पर खुदा का नूर टपका करता था, उसकी नाक तो गजब की सुन्दर थी, जब तक वो साथ रही मुझे अहसास ही नही हुआ कि एक जमाना गुजर गया है। हमेषा जिन्दादिल एवं खुषमिजाज रहती थी। कभी गुस्सा भी करती कभी चिड़चिड़ाती तो मै हंस के उसे तब भी छेड़ना न भुलता। कहता तुम्हे मेरे प्यार पर गुस्सा आता है और मुझे तुम्हारे गुस्से पर प्यार आता है। जितना गुस्सा होती हो तुम्हारी शक्ल उतनी आकर्षक हो जाती है, हारकर वो शान्त हो जाती थी। देखते-2 कब 50 बरस की दहलीज उसने पार की पता ही नही चला, बेटा बड़ा हो गया और आने पैरों पर खडा भी हो गया। परन्तु उसे इस नोक झोंक हंसी मजाक, शेरो शायरी ने कभी अहसास ही नही होने दिया की हम दो है। कब हमारा पुत्र अपने नन्हे पैरो पर खड़ा हो गया और इन्जीनियर बन गया उसका एहसास आज भी अनूठा है। जीवन के उतार-चढाव दूरी नजदीकियों के बीच गप्पू की अम्मा इस सल्तनत की मल्लिका बन गयी थी। उसकी जी तोड़ मेहनत देखकर कलेजा मुॅह को आ जाता। लगता है जैसे मेंैने ही कोई अपराध कर दिया हो जिसकी सजा ये भारतीय बाला अपनी मेहनत से चुका रही है । मैनें उसे अपने बचपन से लेकर जवानी तक के हर किस्से से वाकिफ कर रखा था । और वो भी अपनी बचपन की यादें काॅलेज की बातें षेयर करती थी। परन्तु मैं जानता हूॅ कि जिसे मेैने बचपन में काल्पिनिक रूप में देखा था, वो तुम्ही थी, जिसे युवा अवस्था में अपने जेहन में सजोंया, ख्वाबो में श्रंगार किया वो चेहरा तुम्ही थी, और तुम्ही मेरे पहलू में अपनी समस्त खूबियों को साकार कर मेरे सामने नजरे झुकायें खडी़ थी। एक समर्पण भाव लिये मानो खूबसूरत नेत्र कह रहे हांे अतिथि तुम कब आओगे।
ग्रामीण परिवेस में साथ-साथ रहते हुये कभी अभास ही नही हुआ कि हम सुख से दूर है, जल के अभाव मंे खुष रहना एवं बिजली के अभाव में खुष रहकर जीवन बिताना मैेने तुमसे सीखा, आवष्यकताओं की आपूर्ति तुम इतनी खूबसूरती से करती हो की दिल वाह-वाह कर उठता है। और आभावों का एहसास तुमने कभी होने ही नही दिया, उक्त परिवेष में रहते हुये कई वर्ष बीत गये, कई बसन्त और पतझड़ बीत गये अचानक एक दिन जीवन की काली स्याह रात भी आई जिसमें हमारे आंनद को झकझोर दिया, मन के तारो को छिन्न-भिन्न कर दिया। घर में आया मेहमान खलनायक बन गया, उस दिन रात्रि के प्रथम प्रहर में गप्पू की माॅ चाय नाषता बनाने किचन की ओर गयी अधंकार में हाथ को हाथ नही सूझ रहा था। उसने सेाचा गैस की रोषनी में मोमबत्ती जलाकर प्रकाष कर लूंगी, परन्तु गैस का लाइटर जलाते ही उसकी एक चीख निकली उसके पैरो पर जैसे किसी ने जलता हुआ अगांरा रख दिया हो पीडा से छटपटाती वो बाहर आयी,
हम अंन्धकार के खतरे को भांप चुके थे। टार्च की रोषनी से किचन में झांका तो गैस सिलेंडर के पास डंक उठाये एक बिच्छू बैठाा था, तुरन्त उसको मार कर हम गप्पू की अम्मा के पास पहुॅचे पैर की कनिष्ठ ऊगंली में एक प्रकार का डंक का घाव दिखाई दिया। हमें उस ग्रामीण परिसर में मेहमान ही एक मात्र सहारा दिख रहा था उसे इस जगह की भौगोलिक एवं सामाजिक स्थितियां ज्ञात थी, मै किंकर्तव्य विमूढ़ हो चुका था, न मैने अपने जीवन में कभी बिच्छू के दंष का उपचार किया था न देखा था परन्तु आगन्तुक के कहे अनूसार हमने पैरो पर रस्स्ी बांधी एवं दष्ंा स्थल को सुई लगाकर सुन्न करने का प्रयास किया। दर्द में जैसे राहत मिली कालचक्र जैसे कुछ क्षणों के लिये थम गया । हमारा गप्पू मां की र्दुदषा देखर कर सिसकते हूये सेा गया। तब वह मात्र साल भर का था रात्र भर मेने सुई लगाकर कई बार राहत देने की कोषिष की परन्तु सुबह होते ही दर्द पुनः षुरू हुआ। मैने खतरे से अन्जान हो कर पुनः सुन्न करने की कोषिष की, परन्तु यह क्याः- दर्द अपनी चरम अवस्था पर पहुॅच गया था ।
मैने अपने सहयोगी चिकित्सक को परामर्ष के लिये बुलाया । रात्रि वाले आगंन्तुक दुबारा कभी झाकने भी नही आये, सहयोगी ने स्थिति गंभीर है, देख कर सेलाइन चढाया एवं बेहोस करने वाली दर्द नाषक दवा का इन्जेक्सन लगाया । उक्त उपचार से त्वरित लाभ हुआ, एवं गप्पू की अम्मा सो गयी। उस दिन मेरे सहयोगी ने एक साथ तीन जिन्ंदगियां बचायी थी, मै गप्पू की अम्मा के बिना नही रह सकता था और गप्पू भी अपनी मां के बिना नही रह सकता था। षनैः-षनैः मेरे व सहयोगी के उपचार ने गप्पू की मां को स्वस्थ्य कर दिया, परन्तु जीवन के जिस भयावह मुकाम पर गा्रमीण जीवन की विभीषका ने हमें ला पटका था । उससे उबरना आसान नही था । आज भी रात्रि के काले अंधकार में जब ये स्याह सड़के सूनी हो जाती है तो प्रकाष के अभाव में एक अन्जाना भय सिर उठाने लगता है। आज हमने जीवन के 50 बसंत साथ-साथ पार किये है । जीवन में यदि पुष्प पुष्पित हुये है तो पतझड़ का बाजार भी मिला है, परन्तु उसकी आंखों में आज भी खोजता हूॅ, एक आमंत्रण, कि अतिथि तुम कब आओगे।

प्रवीण कुमार

Language: Hindi
361 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
जनता का भरोसा
जनता का भरोसा
Shekhar Chandra Mitra
यादो की चिलमन
यादो की चिलमन
Sandeep Pande
हवा तो थी इधर नहीं आई,
हवा तो थी इधर नहीं आई,
Manoj Mahato
23/135.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/135.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"आखिर में"
Dr. Kishan tandon kranti
कैसे भुला दूँ उस भूलने वाले को मैं,
कैसे भुला दूँ उस भूलने वाले को मैं,
Vishal babu (vishu)
दोहे. . . . जीवन
दोहे. . . . जीवन
sushil sarna
“ अपने प्रशंसकों और अनुयायियों को सम्मान दें
“ अपने प्रशंसकों और अनुयायियों को सम्मान दें"
DrLakshman Jha Parimal
मोदी जी ; देश के प्रति समर्पित
मोदी जी ; देश के प्रति समर्पित
कवि अनिल कुमार पँचोली
जो हार नहीं मानते कभी, जो होते कभी हताश नहीं
जो हार नहीं मानते कभी, जो होते कभी हताश नहीं
महेश चन्द्र त्रिपाठी
तुम क्या चाहते हो
तुम क्या चाहते हो
gurudeenverma198
वैमनस्य का अहसास
वैमनस्य का अहसास
Dr Parveen Thakur
यही रात अंतिम यही रात भारी।
यही रात अंतिम यही रात भारी।
Kumar Kalhans
हिन्दी दोहे- इतिहास
हिन्दी दोहे- इतिहास
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
"तेरे लिए.." ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
मेरा तुझसे मिलना, मिलकर इतना यूं करीब आ जाना।
मेरा तुझसे मिलना, मिलकर इतना यूं करीब आ जाना।
AVINASH (Avi...) MEHRA
मैं तो महज एक माँ हूँ
मैं तो महज एक माँ हूँ
VINOD CHAUHAN
मत भूल खुद को!
मत भूल खुद को!
Sueta Dutt Chaudhary Fiji
* बेटियां *
* बेटियां *
surenderpal vaidya
मां के आँचल में
मां के आँचल में
Satish Srijan
अपनापन
अपनापन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
जनता मुफ्त बदनाम
जनता मुफ्त बदनाम
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
"इश्क़ वर्दी से"
Lohit Tamta
Dr arun kumar shastri
Dr arun kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
■ बेमन की बात...
■ बेमन की बात...
*Author प्रणय प्रभात*
अपने अपने युद्ध।
अपने अपने युद्ध।
Lokesh Singh
दिल का सौदा
दिल का सौदा
सरिता सिंह
इस मोड़ पर
इस मोड़ पर
Punam Pande
सुना है सपनों की हाट लगी है , चलो कोई उम्मीद खरीदें,
सुना है सपनों की हाट लगी है , चलो कोई उम्मीद खरीदें,
Manju sagar
मतिभ्रष्ट
मतिभ्रष्ट
Shyam Sundar Subramanian
Loading...