अतिथि -आतिथेय
सुआगत करे अतिथि का , जो हो तेरे द्वार ।
सफल होगे काज सभी , भव से होगा पार ।।
भक्ति सुदामा सी करो , जो दे अपनी जान ।
सीख जरा सी लीजिये , जीवन का यह सार ।।
भाव आतिथेय जागे , हर जन का कल्यान ।
यहीं जगत का मूल है , इसी से मिले त्रान ।।
पाप कमाई हो चुकी , कुछ बचा नहीं ओर ।
जब निकले साँस तेरी , उड़ जायेगा प्रान ।।