“अठन्नी की कीमत” ( संस्मरण )
“अठन्नी की कीमत” ( संस्मरण )
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प्रिय दोस्तों…. आज मैं आप सबको खुद पर ही बीती ,
एक पुरानी कहानी सुनाने जा रहा हूॅं ! उम्मीद है कि यह
कहानी आप सब को निश्चित रूप से बेहद पसंद आएगी !
बात कई साल पहले की है ! उस समय मेरे पिताजी की
पोस्टिंग कटिहार जिले के फलका प्रखंड में हुई थी ।
पिताजी प्रखंड कार्यालय फलका में पदस्थापित थे ।
सपरिवार हम सब फलका में ही रहते थे । घर के निकट
ही मेरा स्कूल हुआ करता था। हम तीसरी कक्षा के छात्र
थे । मेरी उम्र लगभग सात वर्ष की रही होगी ! उन दिनों
कम पैसे की भी बहुत कीमत हुआ करती थी। पाॅंच पैसे,
दस पैसे, पच्चीस पैसे ( चवन्नी ), पचास पैसे ( अठन्नी )
आदि के सिक्के प्रचलन में थे ! मुझे बचपन से ही सिक्के
जमा करने का बहुत शौक है। आज भी जब कोई नए
सिक्के देख लेता हूॅं या कोई ऐसे पुराने सिक्के यदि हाथ
लग जाते हैं ( जो आज प्रचलन में नहीं हैं ) तो उसे मैं झट
से अपने पास बड़े शौक से रख लेता हूॅं । उन दिनों भी
शायद कुछ ऐसा ही हुआ होगा ! कहीं से मुझे पचास पैसे
के सिक्के ( अठन्नी ) हाथ लग गए थे जिसे मैंने बड़े प्यार
से अपने स्कूल बाॅक्स में किताब और काॅपियों के नीचे एक कागज की परत के नीचे छुपाकर रखा था और हर दिन
उस पैसे की खोज-खबर लेता रहता था । स्कूल से आने के बाद दिन में एक बार नियमित रूप से अपनी स्कूल बाॅक्स खोलकर, किताब, काॅपियों के अंदर सुरक्षित रखे उस
सिक्के ( अठन्नी ) का दीदार अवश्य ही कर लिया करता
था । और उस पैसे को सुरक्षित पाकर आश्वस्त हो जाया
करता था !!
एक दिन की बात है…. मैं काफ़ी परेशान हो गया ! हुआ
यह था कि बार – बार खोजने के बावजूद भी वो पचास
पैसे के सिक्के ( अठन्नी ) मुझे नहीं मिल पा रहे थे । मैं बार-बार स्कूल बाॅक्स में रखे किताब, काॅपियों को झाड़- झाड़कर देख रहा था कि कहीं वो किसी किताब या काॅपी
के बीच के पन्नों में फॅंसा हुआ तो नहीं रह गया है…!!
पर बार-बार मुझे असफलता ही हाथ लग रही थी !
मेरे चेहरे के रंग उड़ चुके थे ! अब मैं समझ गया था कि कहीं-न-कहीं कोई गड़बड़ तो जरूर है और घबराहट मेरी
लगातार बढ़ती ही जा रही थी जो मेरे चेहरे पर स्पष्ट रूप
से देखी जा सकती थी ! इसी क्रम में मेरी नज़र मेरे सामने
खिलखिलाते दो चेहरे पर पड़े…. एक मेरी माॅं और दूसरा
मेरा बड़ा भाई…. दोनों ने एक ही साथ मुझसे कुछ रोचक
अंदाज़ में पूछा…. क्या हुआ ‘अजित’ इतने हैरान-परेशान
क्यों दिख रहे हो ! कहीं कुछ गुम तो नहीं हो गया है…??
कहीं वो अठन्नी….?? सवालिया लहजे में उन्होंने पूछा ।
मेरे तो होश ही उड़ गए ! जबकि मैंने कोई ग़लती नहीं की
थी फिर भी मैं डर के मारे झूठ बोलने पर मजबूर हो गया ।
मैंने उनसे कहा कि….” माॅं मैंने उस सिक्के ( अठन्नी ) को
खर्च कर दिया और उस पैसे से जलेबियाॅं खा लीं !!!
मैं कभी झूठ नहीं बोलता था, शायद जीवन में मेरा यह
पहला झूठ था ! और वो भी उस गलती से बचने के लिए
जो मैंने की ही नहीं थी ! शायद पैसे गुम होने वाले प्रश्न
पर मैं काफ़ी असहज महसूस करने लगा…. और बस,
इसी से बचने के लिए मैंने झूठ का सहारा लिया ! जबकि
आज के युग में साफ इसका उलट उदाहरण देखा जा
सकता है। आज के लोग गलतियाॅं भी करते हैं और
उसे सहजता से रफा-दफा भी कर लेते हैं जबकि हमारे
प्रकरण में कोई ग़लती नहीं की गई थी फिर भी किसी
अप्रत्याशित घटना से उत्पन्न हुई परिस्थिति से असहज
होकर जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाने के कारण
झूठ का सहारा लेना पड़ा था !!
कहानी अभी खत्म नहीं हुई है…. मुख्य निष्कर्ष यह रहा
कि मेरा वह झूठ उस समय पकड़ा गया जब अठन्नी गुम
होनेवाले प्रश्न पूछने के दरम्यान मेरे द्वारा दिए गए उत्तर पर
मेरी माॅं और बड़े भाई ने चेहरे पर मुस्कान भरे शब्दों में
मुझसे कहा कि….”अजित”, तुमने कोई ग़लती नहीं की है ! तुम्हारे द्वारा वो पैसे नहीं भुलाए गए हैं ! घर की कुछ
जरूरत आ जाने पर उस पैसे ( अठन्नी ) को हमने तुम्हारे
स्कूल बाॅक्स से निकाल कर खर्च किए हैं ! तुम्हें डरने की
कोई आवश्यकता नहीं है ! तब जाकर मेरे होश में होश
आए पर बिना किसी ग़लती से बचने के लिए मेरे द्वारा
बोला गया झूठ सबके सामने आ चुका था ! मेरी माॅं और
मेरे बड़े भाई के चेहरे पर आई हॅंसी रुकने का नाम ही नहीं
ले रही थीं….
ध्यान देने लायक एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि उन
दिनों सिर्फ़ पचास पैसे ( अठन्नी ) की कितनी कीमत थी,
कि जो जरुरत विशेष में घर के किसी खर्च में बहुत काम
आ सकती थी….!!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लेखक : अजित कुमार “कर्ण” ✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 11 नवंबर, 2021.
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