बचपन की अठखेलियाँ
नटखट नादानी भरा,बच्चों का संसार।
नित नूतन अठखेलियाँ,खुशियों की बौछार।।
मीठी-सी अठखेलियाँ, अल्हड़पन बेवाक।
सुख के सागर से भरा, बचपन कितना पाक।।
बचपन की अठखेलियाँ,कलरव-क्रंदन-खेल ।
मीठी- वाणी तोतली,स्वार्थ हीन है मेल।।
बचपन की अठखेलियाँ, होती सबसे खास।
बन जाती संजीवनी,इसका हर अहसास।।
बच्चों की अठखेलियाँ,माँ को बहुत पसंद।
देख-देख हर्षित हृदय, पाता है आनंद।।
नित नूतन अठखेलियाँ, करते हैं घनश्याम।
मात यशोदा देखती, छोड़-छाड़ के काम।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली