अटल बिहारी वाजपेयी : व्यक्ति और अभिव्यक्ति
शोध आलेख :-
अटल बिहारी वाजपेयी : व्यक्ति और अभिव्यक्ति
एक ध्रुवतारा अमर… प्रकाश था अलौकिक,
छिप गया है बदलों की ओट में ।
अटल था वाणी से, कर्तव्यों से न डिगा था ,
कर्मयोगी था वह …कलम का पुजारी ।
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कलम के पुजारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल जी को संपूर्ण विश्व की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि !
किसी एक प्रतिष्ठित महापुरुष अथवा महिला की जीवनी के संबंध में लिखना इतना सरल नहीं होता जितना प्रतीत होता है लेखक को बड़ी सावधानी के साथ अपने प्रतिष्ठित व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखकर अत्यंत सतर्कता से लिपि बंद करना पड़ता है लिखने से पूर्व लिखने का मन बनाना पड़ता है और मन बनाने से पहले सामग्री जुटाने पड़ती है उसके संबंध में जो कुछ भी मिले जुटाकर आत्मसात करना पड़ता है ।
भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर सन 1924 को उत्तर प्रदेश के प्राचीन स्थल बटेश्वर में पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के परिवार में हुआ बटेश्वर आगरा जनपद में पड़ता है इनके पिता मध्य प्रदेश की रियासत ग्वालियर में अध्यापक थे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की माता का नाम श्रीमती कृष्णा वाजपेयी था उनके पिता श्री हिंदी और ब्रज भाषा के कवि थे । भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की और कानपुर के डी.ए.वी कॉलेज से एम ए राजनीति शास्त्र की परीक्षा प्रथम श्रेणी में । कानपुर में ही वह एल.एल.बी की परीक्षा दे रहे थे लेकिन संघर्ष कार्य करते हुए पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपर्क में आए तो उन्होंने इन्हें भारतीय जनसंघ के प्रचार-प्रसार में लगा दिया तथा जीवन पर्यंत विभिन्न पदों पर आरूढ़ रहे और अंततः दो बार सन् 1996 और सन् 1998 – 2004 तक वह भारत के प्रधानमंत्री भी रहे ।
भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार भी थे । एक असाधारण कवी होने के साथ-साथ एक समर्थ पत्रकार भी रहे उनके पिता स्वर्गीय कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी एक समर्थ रचनाकार थे और ग्वालियर रियासत के जाने-माने कवि थे अपने पिता के समकालीन मंचीय रचनाकारों में माननीय अटल बिहारी वाजपेई की बहुत ख्याती रही । उनकी प्रथम कविता ‘ताजमहल’ बहुत चर्चित रही इसमें शोषण के विरुद्ध उनकी आवाज मुखर हुई है।
उनकी रचनाओं में उनके संघर्षमय जीवन, स्वतंत्र्योंत्तर विषम परिस्थितियां, भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार, राष्ट्रव्यापी आंदोलन आदि सामाजिक एवं राष्ट्रीय व्याधिकीय पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है । उनकी रचनाओं में उल्लेखनीय है – ‘मृत्यु या हवा’ , ‘अमर बलिदान’ , ‘कैदी कविराय की कुंडलियां’ , ‘संसद में तीन दशक’ , ‘अमर आग है’ , ‘कुछ लेख और कुछ भाषण’ , ‘सेक्युलरवाद’ , ‘राजनीति की रपटीली राहें’ , ‘बिंदु-बिंदु विचार’ , और ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ ।
वस्तुत: चाहे तो उनका राजनीति क्षेत्र हो, अथवा साहित्यिक क्षेत्र दोनों ही क्षेत्रों में उनकी असीम उपलब्धियाँ हैं । उन्होंने भारतीय राष्ट्र भारतीय संस्कृति और विश्व संस्कृति के उत्थान के लिए बहुआयामी भूमिका निभाई जितना ऊँचा उनका राजनीतिक जीवन उससे कहीं अधिक ऊँचा उनका साहित्यिक जीवन रहा उनकी समग्र वैश्विक भूमिका रही उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बेजोड़ हैँ । उनका योगदान समय की शिला पर अंकित है भारत ही नहीं विश्व निर्माण में उनकी भूमिका रही, यही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध और शांति को स्थापित करने के लिए उन्होंने ‘वासुधैव कुटुंबकम्’ की भावना से सदैव कार्य किया । एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता होने के साथ-साथ सिद्धाहस्त कवि एवं गीतकार भी थे । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत के गौरव को बढ़ाया । चाहे कारगिल युद्ध अथवा पोखरण में परमाणु परीक्षण, उन्होंने कहीं भी अहंकार अथवा हठधर्मिता का परिचय नहीं दिया । वह शांति एवं सहयोग के महापुजारी थे फलत: उन्हें सन् 2014 में ‘भारत रत्न’ का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देकर विभूषित किया गया यही नहीं उन्हें ‘श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार’ और ‘पदम विभूषण’ पुरस्कारों से भी विभूषित किया गया । अस्तु! न केवल भारतीय राष्ट्र के लिए अपितु समग्र विश्व के लिए उनकी कल्याणकारी दृष्टि एवं सर्व हितकारी योजनाएँ अनिर्वनीय हैं । दुख है 16 अगस्त 2018 को वे गोलोकवासी हो गए ।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा है- “भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है – ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो ।”
साहित्यकार स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में उन्होंने स्पष्ट घोषणा की – “मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं । वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का संकल्प हैं । वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष हैं ।”
भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में उनका आत्ममंथन है – “क्रांतिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रांतिकारियों के साथ हमें न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रांतिकारियों को भूल रहे हैं । आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ ।
वस्तुतः भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक असाधारण सांस्कृतिक श्लाका महापुरुष हैं ।
निष्कर्ष –
कवि सुबह की सुरतिया कालजई होती है जो प्रति क्षण अपने नायक के चंचल मन की समान आकाश पाताल में भ्रमण कर अतीत जीवन की गहराइयों से मोतियों चलती रहती है ।
उनका भारतीयता से ओतप्रोत व्यक्तित्व किसे नहीं मोहता । वे राजभाषा हिंदी के प्रबल पक्षधर थे । देश-विदेश में व्याख्यान हिंदी में ही देते थे । वह मूलतः साहित्यकार थे, उन्हें साहित्य विरासत में अपने परिवार से मिला । कविता बचपन से ही उनकी घुट्टी में पिलाई गई थी । भारतीयता, राष्ट्रीयता, मानवता, उदारता की भावभूमि पर सृजना के स्वरों को मुखरित करने वाले पंडित अटल बिहारी वाजपेई सच्चे अर्थों में माँ शारदा के वरद पुत्र हैं । अटल जी की वाणी में जो सम्मोहन क्षमता थी वह अभी तक तो किसी की भी वाणी में नहीं आ सकी यही कारण है कि उनके भाषणों में बुद्धिजीवी, साहित्यसेवी तथा अन्य सामान्य जन समान रूप से आनंद लेते थे । वह गद्य को जो पद्यात्मकता प्रदान करते थे वह श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे । अटल जी का समग्र व्यक्तित्व पूनम की चाँदनी जैसा मन भावन है उनका चुंबकीय व्यक्तित्व जनमानस में रस के स्थाई भाव की तरह बिखरा हुआ है । वे अपनी स्वच्छ सोच और निष्ठा प्रधान विचारधारा के कारण उपमेय से उपमान हो गए हैं । आकाश के सप्तऋषि मंडल को आप देखते ही होंगे । वह ध्रुव नक्षत्र की परिक्रमा किया करता है । अटलजी भारतीय राजनीति में गगन के ध्रुव नक्षत्र की तरह हमेशा विद्यमान रहेंगे ।
संदर्भ
प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी
जगदीश विद्रोही
बलवीर सक्सेना
नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’