अटल की फुलझडियां
आज गरीबा लाल तो,दिखते मालामाल ।
और सेठ लक्ष्मी हुए, हैं बिल्कुल कंगाल ।।
हैं बिल्कुल कंगाल,सुने थे जिनके चर्चे ।
फांके है घर द्वार, नहीं चलते हैं खर्चे।।
कहै अटल कविराय,कर्म से सबको मानो।
नहीं सार्थक नाम ,नाम से मत पहचानो।।
बाह्य जगत को छोड़ना,क्या इतना आसान।
छोड़ न पाये मोह को,चाहें जायें प्रान।।
चाहें जायें प्रान,मोह में ऐसा उलझा।
ऐसा उलझा पेंच,अभी तक भी नहिं सुलझा।।
कहै अटल कविराय,बात मेरी अब मानो।
छोड़ो माया मोह, आज हॅसने की ठानो।।
अटल मुरादाबादी