अटल एक युगदृष्टा
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तीखा व्यंग सरल भाषा में वो कहते
सब सम्मोहित हो जाते ऐसे वक्ता थे
वो होठों पे मुस्कान बिखेtरे मृदभाषी
कभी न टूटा जो जुड़ता वो रिश्ता थे
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वो सदा रहे सम्राट हृदय जन नायक
हर भारतवासी के शिखर प्रवक्ता थे
प्रहरी प्रखर प्रजातंत्र के सदा रहे वो
कई युगों तक नाम रहेगा युगदृष्टा थे
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स्वाभाविक सहज सरल अभिव्यक्ति
साहित्य- विधा उत्कृष्ट सृजनकर्ता थे
वो सदा रहे उदगारों का गहरा उदगम
रसधार बहे कविता की वो सरिता थे
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थी हिंदी उनमें रची-बसी हरदम रहती
राष्ट्रसंघ ले खड़े हुए हिंदी का झंडा थे
दुनिया के हर कोने में सम्मान बढ़ाया
सिंहासन पर हिंदी बैठाया वो बंदा थे
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निर्णय लेने में सदा रही क्षमता अकूत
हित हिंदुस्तान जहां वो निडर सदा थे
दो टूक बोलते डरा उन्हें न कोई पाया
परमाणु परीक्षण होना निश्चय कर्ता थे
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– रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक