*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
कोप अपना दिखा दीजिये।
भौंयें सबकी चड़ा दीजिये।।
गाल गुब्बारें हो जायगा-
मन्द मुस्कान दिखा दीजिये।।
तुम करारा हो मेरी म़च़ल
उजड़े चमन खिला दीजिये।।
ये तोहमतें ये सिखातें मेरी
जग जाहिर दिखा दीजिये।।
तिल का ताड़ राई के महल
दिखा दुनिया को दिजिये।
वामन घी देत नरयातें है
देवों को होम लगा दीजिये।
एक दिन सबको ख़ाक होना ही है,
मधुर गान सुना दीजिये।।
ज़िन्दगी चार दिन की वन्दे
नेकी के कार्य तो किजिये।।
अज्ञानी ज्ञान की गंगा तो बहा,
भव से पार उतार दिजिये।।
*जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
झांसी बुन्देलखण्ड*