अज्ञात शत्रु
कोई मेरी किस्मत पर डाका डाल रहा हैं,
मुझे बार बार सीढ़ी से नीचे खींच रहा हैं,
जाने कौन है वो मेरा अज्ञात शत्रु !
जो मुझे गुमनामी के अंधेरों में फेंक रहा है ।
मैने तो किसी का कुछ बिगड़ा नहीं ,
फिर क्यों कोई मेरा अहित कर रहा हैं?
मेरे हृदय ने सबके लिए दुआ ही दी ,
फिर क्यों कोई मेरे लिए आह भर रहा है ?
ईश्वर बचाए ऐसे अज्ञात शत्रु से,
जिसने मुझे व्यथित कर रखा हैं।
मैं आगे बढूं या पग अपने रोक लूं ,
मुझे नदी के मझधार में छोड़ रखा हैं।
अब ईश्वर ही दिखाए कोई रास्ता,
अब सब उस पर छोड़ रखा है ।