अजीब होती जिंदगी
अटकती – सहमती जिन्दगी से
लुप्त हो चुकी है
सुरभित रात-रानी
बढ़ चुकी है मोड़-मोड़ पर
बिगड़ैल सी नागफनी
जो तैयार रहती है
नोंच लेने को ….शब्दों का मुख
तरेरती है आंखे …डपट देती है
भावुक सुधियों को
जिंदगी !
बढ़ रही है नये रूप से…
कतराती हुई रिश्तों से
चुका रही है अपनेपन का फर्ज
अनुभूतियों की किश्तों से …
असाध्य अनुभवों को जीती हुई
विवश है …अतृप्त है…उचाट जिंदगी
जिसके सपनों को चिर-प्रतीक्षा है
महकती सी तुलसी की…
और किलकारी भरती हुई…
एक उजली रूपसी धूप की !
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ