अजीब लड़की
अजीब लड़की
देखी थी मैंने एक अजीब लड़की
जो जीवन के हर दिन को
समझ कर खाली केनवस
बिखेरती थी उस पर
मनमाने रंग …
देखी थी मैंने एक अजीब लड़की
जो लिपट कर तन्हाइयों से
लेती थी सिसकियां
ढूँड़ती किताबों में
वो अपनी दुनियां …
देखी थी मैंने एक अजीब लड़की
जो खुद को समझाती
खुद को बहलाती
खुद पर ही हसती
खुद को सहलाती…
देखी थी मैंने एक अजीब लड़की
जो वक़्त की धड़कन को
सुनती थी हर पल
नामुमकिन सपनों को
बुनती थी हर पल …
हाँ आज ही सुबह
अपने ही घर
अपने कमरे के आईने में
देखी थी मैंने एक ‘अजीब लड़की’..
– क्षमा ऊर्मिला