अजीब एहसास ।
हैं जो बिल्कुल अंजाने से,
फिर भी लगते पहचाने से,
कुछ जाने-पहचाने बरसों के,
पर हैं बिल्कुल अंजाने से,
बिना कहे भी कभी-कभी,
बहुत से एहसास हो जाते हैं,
कारवाँ-ए-ज़िंदगी में चलते-चलते,
कुछ अजनबी भी ख़ास हो जाते हैं,
कुछ दे जाते हैं यादें सुनहरी ऐसी,
कि उम्र बीत जाती है भुलाने में ,
कुछ अजनबी हो जाते अपनो से बेहतर,
जाने में या अंजाने में।
-अंबर श्रीवास्तव