*अजीब आदमी*
8.20 pm
डा. अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक / अरुण अतृप्त
अजीब आदमी
दर्द देकर भी कोई दवा मांगता है
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है ||
दुखों की गागर सर पर उठाए
लोटे में अपने शिफ़ा मांगता है ||
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है
जुबां पर है गाली लिए जेब खाली
किए कर्म त्राटक बनता है साधक
दर्द देकर भी कोई दवा मांगता है
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है ||
सफ़ीना भंवर में के जीवन अधर में
मंजिल पे अपना मकां मांगता है
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है
बुझा कर चरागां, वो बस्ती के सारे
अन्धेरों से अब भागना चाह्ता है ||
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है
दर्द देकर भी कोई दवा मांगता है
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है
कभी कोई आया जो दामन फैलाया
फट्कार कर के है उसको भगाया
जरुरत पे अपनी भर के नयन अब
दुनिया में सबसे दया मांगता है ||
अजीब आदमी है ये क्या मांगता है
अरुण तुम ही समझो तुम्हारी गज़ल है
लिखा जो भी तुमने, पाठक तो तुमसे खुशी मांगता है ||