अजन्मी की व्यथा
अजन्मी की व्यथा
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माँ !!
सुना है !
डॉक्टर भगवान है !
जिन्दगी बचाकर
जिन्दगी देता है |
हाँ !!
सही भी है !
तभी तो……..
मौत के मुँह से
खींच लाता है
इंसान को ||
लेकिन अपवाद
हर क्षेत्र में मौजूद हैं !
यहाँ भी हैं………..
चंद पैसों की खातिर
बिक जाता है !
ये धरती का भगवान
और बन जाता है
लालची हैवान ||
तभी तो……….
मुझ अजन्मी को
कोख में ही पहचानकर
कोख से निकाल फेंकता है
और कर देता है
मेरी हत्या !!
मेरे जन्म लेने से पूर्व ||
यही नहीं……………
सौदागर भी हैं
चंद डॉक्टर !
जो करते हैं सौदा
मानवीय अंगों का….
कभी दिल का
तो कभी गुर्दे का !
कभी खून का
तो कभी आँखों का !!
क्या कहूँ ?
मैं तो चली जाऊँगी
अजन्मी ही !!!
लेकिन…….
मैं पूछती हूँ !
उन डॉक्टरों से
जो खो चुके हैं !
संस्कार !
नैतिकता !
मानवता !
और स्वधर्म !!
कि आखिर क्यों ?
खुद के भगवान का ओहदा
उसने पैसे को दे दिया ?
आखिर क्यों ??
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”