अजनबी !!!
ओ अजनबी!
काश तुम आ जाते,
कुछ अंतरंग पल साथ में बिताते
देह गंध से सुवासित कुछ क्षण
शायद अमिट हो जाते
विधि की तूलिका से
चित्रित हो जाते
क्षितिज में विकीर्ण रंग
घुल मिल जाते
भिन्न रहते नहीं
इकाई बन जाते
एक दूजे में समा जाते
रंगों पर रंग चढ़ जाते
एकरस हो जाते
भीतर तक उतर जाते
तुम्हारे स्पर्श के बीज
रक्त में बो जाते
यही बीज अनुकूल मौसम में अँखुआते,
गंध भरे पौधे, वनस्पति, वल्लरी,
शायद वृक्ष बन जाते
फूलते प्रेम के फूल
जिनकी सुगन्ध, स्वर लहरी बन
हवा के साथ
मादक गीत गाती
दिशाओं में गूँजती हुई
तुम तक पहुँच जाती
आमोद के पल्लव सरसराते
शीतल सी छांँव में पथिक
स्वेद बिन्दु सुखाते,
कुछ देर सुस्ताते
वृक्ष का कठोर मूल
धरती को बाँधता
अन्तस का जल खींच लेता
वृक्ष को अक्षत कर देता
वृक्ष यह पीढ़ियों तक कहानी सुनाता
वृद्ध हो सूखने पर
चिताओं में जल कर
अनेक आत्माओं को मुक्ति देता
सायुज्य यदि किसी आत्मा का
चिरन्तन से होता
हमारा वह क्षणिक प्रेम
अमरत्व पाता…