अजनबी
मिला था एक अजनबी
मुझे आज भी याद है
यादगार था वो दिन
मुझे आज भी याद है
हाथों की लकीरों को
प्यार की ज़ंजीरों को
नहीं मानता था वो
पंडितों और पिरों को
दिल का साफ था
जुबान का सच्चा
लगता था वो मुझे
बहुत ही अच्छा
देखते ही मेरे दिल में
बस गया था वो
मुझे पता भी ना चला
कब मेरा हो गया था वो
वो भी तो अब मुझे
दोस्त कहने लगा था
महीने में दो चार बार
मुझे मिलने लगा था
जब भी मिलता मुझे
अच्छे से बात करता
नज़रों से नज़रें मिलाके
कोई भी बात करता
दिल में मेरे क्या है
ये भी जानता था वो
वो भी मुझे चाहता है
कभी कभी कहता था वो
फिर एक दिन अचानक
वो पता नहीं कहां खो गया
बड़े इंतजार के बाद मिला था
ये मेरा नसीब फिर सो गया
बिना बताए चला गया
मुझको अकेला छोड़कर
फिर पीछे नहीं देखा मुझे
उसने कभी भी मुड़कर
आज मुद्दतों बाद एकबार
फिर नज़र आया वो कहीं भीड़ में
उसे देखकर अब कुछ भी
एहसास नहीं हो रहा है
अजनबी लग रहा है वो फिर भीड़ में