अजनबी शहर
*******अजनबी नगर********
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आज फिर उनसे मिल गई नजर हैं
अपना लग रहा अजनबी नगर है
हाथ न आएगा जो पल है गुजरा
वापिस लौट जाओ यही हसर है
कोशिशें लाख की पर राह न आई
दोष न दो ये जमाने का असर है
चाँद सुन्दर छिपे नजरें बचा कर
चाँद को पाने की लगी लहर है
जीत कर भी सदा हार हो जाती
प्रेम की बहुत ही मुश्किल डगर है
मनसीरत मन में मनौती मांगे
हालत प्यार में हो गई लचर है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)