अछूत रुपया
रुपया बहरूपिया होत,
एक से दूध हाथ जावद।
गणना पर हर कोई थूक जगावत,
जात पात नहीं देखत।
रुपया मदारी होवत,
रुपया के बल पर हर कोई,।
हर इंसान को नाच नचावे,
रुपया के बल पर भी नंगा भी बन जाता दमदार,
रुपया अपवित्र होता,
दुकान कलवारी से मांस तक जाता।
जिंदगी आदमी से छुआछूत,
रुपया अपवित्र से प्रीत।
अंशु कवि ,
की मानो जरूर
रुपया केबल ना करो गरूर।।
। मंदिर को ना बनाओ अछूत।
ना करो रुपया चढ़ाकर भूल,
मंदिर पर अब चढ़ाव फूल।
नारायण अहिरवार
अंशु कवि
होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
।