अच्छे दिन
जो कहते थे रब्ब के बंदे हैं हम
क्यों आजकल वो स्वार्थ में अंधे हो रहे हैं।।
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लाशों के ढ़ेर, वतन की आन बेचना
देखो आजकल उनके बस ये धंधे हो रहे हैं।।
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उनका कहना था कि अच्छे दिन आएंगे
उनके खातों में अरबों-करोड़ों के चंदे हो रहे हैं।।
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मातम है चहूँ और, व्याकुलता का शोर
काले कानून,कालाबाज़ारी गले के फंदे हो रहे हैं।।
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कहते थे खुद को पाक साफ़ जो कभी
क्यों चौले आजकल उनके गंदे हो रहे हैं।।
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जो अँधेरों को जग से मिटाने चले थे
“दीप” उनके उजाले क्यों मंदे हो रहे हैं ।।
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कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”