अच्छे थे जब हम तन्हा थे, तब ये गम तो नहीं थे
अच्छे थे जब हम तन्हा थे, लेकिन ये गम तो नहीं थे।
बदनाम ऐसे हम नहीं थे, कम किसी से हम नहीं थे।।
अच्छे थे जब हम तन्हा थे——————-।।
अब तो नहीं है नींद आँखों में, जब से हम तुम मिले हैं।
चैन नहीं है अब तो हमको,कल तक गुम ऐसे हम नहीं थे।।
अच्छे थे जब हम तन्हा थे——————–।।
देखते हैं शक से हमें अब, जैसे निवासी नहीं हो यहाँ के।
पहचानते हैं इसी काम से अब, कल बेशहर ऐसे हम नहीं थे।।
अच्छे थे जब हम तन्हा थे——————-।।
करता नहीं अब कोई मदद, और खफ़ा है अपने भी हमसे।
मजहब का दुश्मन कहते हैं हमको, कल ऐसे इल्जाम नहीं थे।।
अच्छे थे जब हम तन्हा थे——————–।।
बर्बाद हो गए ख्वाब हमारे, जबसे तुम्हें हमने ख्वाब बनाया।
खाली घर है, आँसू है आँखों में, बेकदर ऐसे कल हम नहीं थे।।
अच्छे थे जब हम तन्हा थे——————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)