अच्छी ख़बर दोगे क्या?
मैने देखा है जो कुछ भी वो कम तो नहीं,
नज़रंदाज कर सकूं एसी नज़र दोगे क्या?
माना है बेहद काँटों से भरी जिंदगी मेरी,
सारे काँटे बदलकर फूल कर दोगे क्या?
आदी हूँ आए दिन अशुभ समाचारों का ,
क्या तुम कोई अच्छी ख़बर दोगे क्या?
बहुत आसान था बागा़न को विरान करना,
उजड़े घोंसलें को उनका बशर दोगे क्या?
चलो भूला देगें सब एक सपना समझकर,
है शर्त पुराना मेरे सपनों का घर दोगे क्या?
जख्म़ नया ही सही लाइलाज है जनाब!
दवा या दुआ का कोई असर दोगे क्या?
मुझे मुहब्बत नहीं रही ए जिंदगी! तुझसे,
दे सको गर तो थोड़ा सा ज़हर दोगे क्या?
-शशि “मंजुलाहृदय”