*अच्छी आदत रोज की*
अच्छी आदत रोज की
आओ बच्चों तुम्हें सिखाएं, अच्छी आदत रोज की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।
नाखूनों में मैल भरे ना, उनको समय से तुम काटो।
बालों में कंघा भी कर लो, एक दूसरे को ना डांटो।
नहाओ रोज स्वच्छ कपड़े पहनो, आदत डालो खोज की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।१।।
चारों ओर हो साफ सफाई, खुद कर लो कुछ नहीं बुराई।
कानों में ना सींक करो तुम, आंखों में पानी मारो।
मिलजुल कर है रहना हमको, वाणी रखो ओज की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।२।।
गलत कभी ना बोलो तुम, मन में तोल कर खुद बोलो।
अंधविश्वास से दूर रहो तुम, बचाओ समय मीठा बोलो।
भूख में ही खाना खाओ, ये आदत डालो भोज की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।३।।
आलस का त्याग करो तुम, कभी ना आंखें चार करो।
मधुर मीठा व्यवहार करो तुम, महापुरुषों का सार पढ़ो।
पढ़ो लिखो और खेल भी खेलो, ये हो आदत रोज की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।४।।
रिश्तो का भी ध्यान करो तुम, बड़े छोटे की लाज करो।
मात पिता और सज्जनों की, सेवा को तैयार रहो।
खुश रहो प्रसन्न रहो तुम, जिंदगी लगे ना बोझ की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।५।।
अनुशासित रहो ईमानदार बनो, लापरवाही से पकड़ो कान।
अच्छा करोगे अच्छा बनोगे, देश बनेगा तभी महान।
स्पष्टता रखो बातों में तुम, ना बात करो गोलमोल की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।६।।
जातिवाद ना छुआछूत करो, भेदभाव ना ऊंच-नीच।
इंसानियत हो धर्म हमारा, कोई श्रेष्ठ ना कोई नीच।
ग्रंथ है राष्ट्रीय संविधान, ना बात करो किसी और की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।७।।
सर्वजन का आदर कर लो, सब है मानव एक समान।
एक सांस है एक खून है, फिर क्यों भेद करे इंसान।
गलत बात पर खुलकर बोलो, क्यों बात करो तुम मौन की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।८।।
जो धर्म तुम्हें नीच बताएं, वो धर्म नहीं एक धंधा है।
अनपढ़ की बात करो ना, पढ़ा लिखा भी अंधा है।
दुष्यन्त कुमार की मानों भैया, ना मक्कारी सही रोज की।
जल्दी उठो शौच करो तुम, जिंदगी काटो मौज की।।९।।