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1 Mar 2022 · 1 min read

अच्छा है क्या

बिन मौसम की बारिश में नहाना, अच्छा है क्या?
सच को झूठ से आईना दिखाना‌, अच्छा है क्या?

देश और अवाम वास्ते हो सियासत, तो क्या कहने,
हाकिम का जनता को उल्लू बनाना, अच्छा है क्या?

जब नज़रंदाज़ करता हूँ हमेशा मैं, अपने गिरेबां देखना,
फिर मेरा हर तरफ़ उंगली उठाना, अच्छा है क्या?

बेवफाईयों के इल्ज़ाम वो लगा रहा, आसानी से मुझपे,
मजबूरियों में उसका मुझे आजमाना, अच्छा है क्या?

माना मेरा हालातों से युद्ध है तो है, कोई बात नहीं,
पर यार का दुश्मनों से हाथ मिलाना, अच्छा है क्या?

मैं जानता हूँ के मेरी शिकस्त, मुकर्रर ही है प्यार में,
ज़माने के आगे मेरा गिड़गिड़ाना, अच्छा है क्या?

यार की आगोश के जो दो पल, मयस्सर हैं तुझे ‘अनिल’,
दूसरी जन्नत वास्ते हाथ फैलाना, अच्छा है क्या?

(मुकर्रर = निश्चित, निर्धारित इकरार किया हुआ, नियुक्त, नियत, अनुबंधित)
(मयस्सर = मिलना, प्राप्त होना, उपलब्ध होना, सुलभ होना)

©✍?01/03/2022
अनिल कुमार ‘अनिल’
anilk1604@gmail.com

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