अच्छा सा लगा मुझको
ये शहर वफ़ाओं का दरिया सा लगा मुझको
हर शख़्स मुहब्बत में डूबा सा लगा मुझको
हद दर्जा शरारत पर कुछ शोख़ अदाओं से
जब तुमने कहा पागल अच्छा सा लगा मुझको
तफ़रीक़ मनो तू की जब हमने मिटा दी है
चिलमन में तेरा रहना बेजा सा लगा मुझको
ऐ हूरे ज़मीं तुझसे ईमान की कहता हूँ
ये चाँद तेरे आगे फींका सा लगा मुझको
जब साअते तन्हाई करवट लिये सोती थी
उफ़ कहना तेरा आकर नग़्मा सा लगा मुझको
बाहों के शिकंजे में उस पैकरे नाज़ुक को
जब मैंने कसा “सालिब”शोला सा लगा मुझको