अच्छा-बुरा
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पतझार अच्छा है
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उगे पाषाण सा मन तोडकर वह प्यार अच्छा है ,
किया जाता बिना जो स्वार्थ के उपकार अच्छा है ,
अलग सबकी कसौटी है बुरा-अच्छा बताने की,
उगेंगे डाल पर किसलय अतः पतझार अच्छा है ।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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