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19 Apr 2022 · 4 min read

*अग्रसेन भागवत के महान गायक आचार्य विष्णु दास शास्त्री : एक युग , एक महापुरुष*

अग्रसेन भागवत के महान गायक आचार्य विष्णु दास शास्त्री : एक युग , एक महापुरुष
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आचार्य विष्णु दास शास्त्री (आगरा वालों) के निधन के समाचार से मुझे बहुत दुख हो रहा है। 17 अप्रैल 2022 को संसार एक महापुरुष से वंचित हो गया ।
आचार्य जी से मेरा संपर्क 2019 में मेरी पुस्तक “एक राष्ट्र एक जन” के प्रकाशन के उपरांत आया था । इस पुस्तक में महाराजा अग्रसेन ,प्राचीन अग्रोहा और अग्रवाल समाज का अध्ययन था । पुस्तक के प्रचार-प्रसार ने आचार्य जी को आकृष्ट किया । उन्होंने पुस्तक की एक प्रति मुझ से माँगी । मैंने भेजी और तुरंत व्हाट्सएप पर उनका प्रोत्साहित करता हुआ संदेश मेरे पास आ गया । पुस्तक की प्रशंसा पढ़कर मुझे अच्छा लगा । लेखन कार्य सफल हुआ। अब धीरे-धीरे आचार्य जी से फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू होने लगा।
आचार्य जी सारे भारत में अग्रसेन भागवत कथा कहने के लिए प्रसिद्ध थे। हजारों-लाखों की संख्या में आपके भक्त देश के कोने-कोने में विद्यमान हैं। “अग्रसेन भागवत” आपकी कालजई कृति है । आपने मुझे स्नेहपूर्वक यह पुस्तक भेजी, इसके लिए मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ। पढ़कर मैंने पुस्तक की समीक्षा लिखी ।आचार्य जी को भी यह समीक्षा पसंद आई और उन्होंने अग्रवाल समाज की उच्च कोटि की नागपुर से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका में यह समीक्षा प्रकाशित भी कराई । आचार्य जी ने “संगीतमय गो-कथा” पुस्तक 2022 में प्रकाशित की थी ,जिस की समीक्षा करने का सौभाग्य मुझे मिला । अग्रवालों से संबंधित त्रैमासिक पत्रिका “अग्रमंत्र” का प्रकाशन भी आप लगातार कर रहे थे । इसके कुछ अंकों की समीक्षा भी मैंने की है ।
आप इधर आ कर महाराजा अग्रसेन से संबंधित एक फिल्म बनाने की योजना पर कार्य कर रहे थे । आपका बजट 20- 25 लाख रुपए का था तथा इसी छोटे-से बजट में आप करोड़ों रुपयों वाले फिल्म जगत में प्रतिस्पर्धा के द्वारा एक क्रांति पैदा कर देना चाहते थे ।
आप की योजना आजकल सामाजिक चेतना हेतु पदयात्रा के बारे में चल रही थी । मैंने आपके स्वास्थ्य को देखते हुए आपको अधिक परिश्रम न करने की सलाह दी थी, जिस पर आपने टेलीफोन पर ही ठहाका मारते हुए अपने चिर-परिचित लहजे में कहा था -“अगर हम कार्य नहीं करेंगे ,तब जीवित कैसे रहेंगे ? यही तो हमारी संजीवनी है” मैंने उसके बाद भी इतना जरूर कहा कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए ही कोई कार्य कीजिए लेकिन संभवतः वह परिश्रम करने के अपने स्वभाव से विचलित नहीं हुए और नियति को जो मंजूर था ,वही हुआ।
महाराजा अग्रसेन के संबंध में आचार्य जी ज्ञान के साक्षात भंडार थे । वह अपनी अंतर्दृष्टि से महाराजा अग्रसेन और उनके युग का साक्षात दर्शन करने में समर्थ थे। किस-किस समय पर क्या-क्या घटनाएँ हुई होंगी, तथा पात्रों के संवाद विश्व चेतना के साथ किस प्रकार अस्तित्व में आए होंगे ,इसका भली-भाँति ज्ञान उनको आंतरिक चेतना से हो जाता था । तभी तो वह फिल्म -निर्माण की सोच रहे थे । इस दिशा में कार्य शुरू कर चुके थे तथा अग्रसेन भागवत जैसी विशाल वृहद-आकार पुस्तक की रचना कर पाए। आगरा आदि क्षेत्रों में वह फिल्म की शूटिंग करने के इच्छुक थे। उनका कहना था कि आगरा आदि में उन्हें पोशाकें आदि अच्छी प्रकार से उपलब्ध हो जाएंगी।
आचार्य जी प्रैक्टिकल व्यक्ति थे । वह कंधे पर एक झोला डालकर सड़क पर पैदल यात्रा करने वाले व्यक्तियों में से थे । एक माइक उनकी सबसे बड़ी पूँजी थी । वह मुझसे कहते थे कि मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए ,बस मैं कार्य करता रहूँ। कोरोना के काल में उनकी गति रुक गई थी लेकिन अब आकर उन्होंने शीघ्रता से रफ्तार पकड़ ली थी ।
वह सत्यता के उपासक थे एक बार व्हाट्सएप पर उनका एक मैसेज मेरे पास आया जिसमें उन्होंने शिव पुराण में कोरोना का उल्लेख बताया था । मैंने जब उनसे कहा कि यह पोस्ट कहीं भ्रामक तो नहीं है तथा आपने शिवपुराण पढ़कर यह बात लिखी है ? तब थोड़े समय बाद ही उनका उत्तर आया “फेक न्यूज” अर्थात यह सत्य नहीं है। इस तरह असत्य को त्यागने और सत्य को ग्रहण करने में शास्त्री जी आचार्य जी तैयार रहते थे ।
आचार्य जी शास्त्री जी के नाम से विख्यात थे। उनका कहना था कि आप आगरा में आ जाइए और शास्त्री जी के नाम से किसी से भी पूछ लीजिए ,आपको पता चल जाएगा । शास्त्री जी ठहाके मारकर हँसने में विश्वास करते थे । प्रतिद्वंद्विता के युग में उन्हें मालूम था कि किस प्रकार अपने आप को विश्व पटल पर टिका कर रखा जाता है ।
वह अपने पास से पैसा खर्च करके किताबों को मुफ्त बाँट कर साहित्यकार कहलाने वाले लोगों में से नहीं थे । कई बार उन्होंने इस परिदृश्य पर खिन्नता व्यक्त की थी । वह अपनी पुस्तकों का उदाहरण देते थे और कहते थे कि मुझे अपने पास से एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता। मेरी पुस्तकें हाथों हाथ बिकती हैं और पाठक उन्हें रुचि पूर्वक पढ़ते हैं । उनकी दिन-दिन बढ़ती लोकप्रियता मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय था । मुझे प्रसन्नता होती थी कि मेरा सीधा संपर्क अग्रवाल समाज के शीर्ष संत से है। अब सब कुछ बिखर गया ।
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लेखक: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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