अग्नि में दिये ( कविता)
कब जलेंगे आँगन में दीपक
खूबसूरत लगेंगे यें कितना
अग्नि में दिये , दिये में बाती
चलें चलों खुशियां के घर में
प्रेम बन्धन का दीप जलाएँ
रोशनी की दुनिया कौन जाने ?
यें अंधेरे की दिवाले से जाकर पूछो
क्या ! रोशनी नहीं लगती प्यारी तुझे
अपनी पर को पर नहीं होने दो न
सारे भव में तस्वीर रच दो न
चित्र – चित्र में क्या छिपा यें गति ?
यें भी चल है तुम कब हो रहें चल
इतिवृत्त भी है दास्तां के धरोहरों में
कितने और क्यों हैं गुमान तेरे
क्या सार की प्रकृति नहीं दिखती तुझे ?
तू मनु स्वयं के वश में क्यों हो ?
बाती की जलती तस्वीर देखो
कैसी है इसकी धू – धू भींगी लौह ?
क्यों हो गयी कब से पुरानी ?
यें मिटी पर के पर के लिए
लेखक :- वरुण सिंह गौतम