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30 Jan 2024 · 1 min read

अग्नि परीक्षा!

सही हुआ उसके घर बेटी न हुई बेटी पाने योग्य होता वो कैसे कभी
जिसने स्त्री की मान मर्यादा एवं प्रतिष्ठा का मोल ही न जाना कभी!

उसका साथ निभाने के लिए ही तो पत्नी बसा संसार छोड़ हुई बेघर
डूबी उसके प्रेम में बस चल दी उसके संग भटकने हर बस्ती हर नगर!

ख़ाक छानती रही वो पहाड़ों की जंगलों में घूमती फिरी थी हर डगर
क्या मान सम्मान किया पत्नी का उसने क्या त्याग की हुई थी कदर!

पवित्रता की परीक्षा देकर भी अविश्वास मिला बलिदान हुए विफल
बस त्याग दिया उसने उसे किसी के कुछ व्यंग्य भरे शब्द ही सुनकर!

सिर्फ़ औरत ही लटकी रहती है अधर में उसकी साख रहे कसौटी पर
क्यों उसके बेदाग़ आँचल का निर्णय होगा मर्द की मर्ज़ी पर ही निर्भर!

क्यों प्रश्न नहीं होता मर्द से भी उसकी पवित्रता की परीक्षा को लेकर
क्यों मर्द भी इस पीड़ा से नहीं गुजरता वो भी नहीं कोई पवित्र सरोवर!

उसे श्रापित ही कहूँगा जो बेटी से वंचित रहा ये बात चाहे न मानें सभी
कर्मफल भोगना ही पड़ता है देर भले ही हो चाहे तो कभी यूँ बस अभी!

Language: Hindi
139 Views
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