अग्निपरीक्षा
आस करी थी प्यार की पर, वह विश्वास भी भली रही!
हर युग, हर काल में केवल, क्यों ये नारी ही छली गयी!!
मर्यादा की मर्यादित संगनी, अग्निपरीक्षा में जली नही!
पर प्रेम में हुए संदेह कारण, समाई पृथ्वी में चली गयी!!
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कोई जल गया तो कोई, जबरदस्ती ही जलाया गया!
लोभ, द्वेष, अहंकार से, सिर्फ नारी को सताया गया!!
क्यों ऐसे जौहर, सती, आहुति, और अग्नि परीक्षा में!
कभी नियमतः पुरुष प्रधान को, नही मिलाया गया!!
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ३०/११/२०१९ )