अग्निपथ
पहले मुद्दों पर होते
होंगे प्रदर्शन,
लोकतांत्रिक हक था
जरूरी भी रहा हो शायद,
पर कहीं न कहीं,
एक मर्यादा,
एक लक्ष्मण रेखा भी
जरूर थी,
आज विरोध को,
मुद्दे की
बैसाखी की
जरूरत भी नहीं रही,
प्रदर्शन, अब खरीदे और
प्रायोजित होते हैं,
उचित दामों पर,
फिर छा जाते हैं
समाचार पत्रों , टी वी और
ट्वीटर पर,
पैसे दिए
एक अफवाह फैली,
और भीड़ का
तांडव शुरू,
सब कुछ
तहस नहस करने
का जुनून,
सड़कों पर कीचड़
की तरह फैल गया,
कुछ दिनों के लिए!!!
मदारियों के इशारे पर
नाचती इस भीड़
को भले बुरे से कुछ
सरोकार
भी नहीं।
किसी ने भला करने की
सोची है,
इसलिए विरोध तो करना
ही है,
होगा भी
और जम कर होगा,
चाहे रेल के डब्बे जलें,
वाहन टूटें
या लोग ही मरें,
इनकी बला से!!!
ये जानते हैं,
आम जनता
कुछ नहीं कहेगी,
इसने सात दशको में,
बस चुप रहना ही सीखा है!!
इस मौन की कीमत
क़िस्त दर क़िस्त
यूँ ही वसूल होनी है
और होती रहेगी
तुम्हारी मूढ़ता को
ठेंगा दिखाकर,
मुमकिन है, ये अग्निकांड भी
भविष्य के कुछ नेताओं
को जन्म दे दे,
हाल के वर्षों की तरह!!
आंदोलन से उपजी ये सड़ी पौध,
एक आध
बारिशों में धुलकर,
सादे कपड़ों में
टोपी
या मफलर
लगाए,
शांति और भाईचारे की
बात भी करे,
और तुम अपना मौनव्रत तोड़कर
इन नए मसीहाओं को
एक बार फिर,
अपने कंधो पर
उठा लेना!!!